Jeevan Vidya Books pdf

 

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All Books are by A.Nagraj, Jeevan Vidya Prakashan,  (Jeevan Vidya Prakasana) Divya Path Sansthan, Bhajnashram, in front of Narmada Mandir, Amarkantak, MP- 484886 - www.divya-path.org

Jeevan Vidya Books pdf - Madhyasth Darshan books pdf

03_jeevan_vidya_ek_parichay_2017_c 02_divya_path_2017_c 01_vikalp_aur_jv_adhyayan_bindu_2015_c

04_manav_vyavhar_darshan_2015_c

06_manav_abhyas_darshan_2018_c

07_manav_anubhav_darshan_2015_c

08_anubhavatmak_adhyatamvad_2009_c

09_samadhanatmak_bhautikvaad_2009_c

10_vyavharatmak_janvaad_2017_c

11_avartanshil_arthashastra_2009_c

12_vyavharvaadi_samajshastra_2009_c

13_manav_sanchetnavaadi_manovigyan_2008_c

14_manviya_samvidhaan_sootravyakhya_2007_c

15_paribhasha_sanhita_2015_c

16_samvaad_part1_2011_c

17_samvaad_part2_2013_c

20_manav_vyavhaar_darshan_english_hindi_2012_caarogya_shatak_2017_c 05_manav_karm_darshan_2017_c

19. मानवीय आचरण सूत्र_included in samvidhan_A16 c

17. विकल्प प्रथम संस -2006_A211.c

04. अनुभव दर्शन 1985_प्रथम संस.A12. c

08. सत्ता में संपृक्त प्रकृति 1986_A13_included in bhoutikvad. c

15. परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था 1986_A14_included in arthashastra.c

01. मानव व्यवहार दर्शन 1972-प्रथम संस_A10. -c 20_manav_vyavhaar_darshan_english_hindi_2012_c

15. परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था 1986_A14_included in arthashastra.c

19. मानवीय आचरण सूत्र_included in samvidhan_A16 c

04. अनुभव दर्शन 1985_प्रथम संस.A12. c

17. विकल्प प्रथम संस -2006_A211.c

 

Articles /  लेख

01. विकसित चेतना की आवश्यकता -१ 02. विकसित चेतना की आवश्यकता -२ 03. इंधन में विकल्प की आवश्यकता 04. विकसित चेतना की आवश्यकता -३ 05. प्रमाण 06. यथार्थ-१ ब्रह्म सत्य जगत नित्य है 07. यथार्थ -२ व्यापक वस्तु 08. यथार्थ-३ - सत्ता में प्रकृति संपृक्त है 09. यथार्थ-४ - सत्ता ही इश्वर 10. यथार्थ-५ - जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में मानव 11 यथार्थ-६ - मानव जाति एक, कर्म अनेक 12 यथार्थ-७ - मानव धर्म एक, समाधान अनेक 13. वास्तविकता -१ 14. वास्तविकता -२ 15. ज्ञान-१ 16. ज्ञान-२ 17. अनुसन्धान १ - गठनपूर्णता 18. अनुसंधान-२ क्रियापूर्णता,आचरणपूर्णता 19 प्रतिपादन-१ आधार 20. प्रतिपादन-२ जीवन अमर है 21. प्रतिपादन-३ - सहअस्तित्व 22. प्रतिपादन-४ - विकसित चेतना विधि 23 प्रतिपादन-५ - सतर्कता सामाजिकता 24. प्रतिपादन-६ - सजगता सहजता 25. सत्यता-१ - सहअस्तित्व 26. सत्यता-२ - सह-अस्तित्व में जागृति ही नियति है 27. सत्यता-३ - नियति ही व्यवस्था 28. सत्यता-४ - विकास और जागृति ही सृष्टि है 29. सत्यता-५ - नियम ही न्याय 30. सत्यता-६ - न्याय ही धर्म है 31. सत्यता-7- धर्म ही सत्य है 32. सत्यता- ८- सत्य ही ऐश्वर्य है 33. सत्यता-९ - ईश्वर ही आनंद है 34. सत्यता-१० - आनंद ही जीवन है 35. सत्यता-११ - जागृत जीवन ही नियम है 36. सत्यता-१२ भ्रमित मानव कर्म करते समय स्वतंत्र, फल भोगते समय परतंत्र 37. सत्यता-१३. जागृत मानव कर्म करते समय में भी स्वतंत्र, फल भोगते समय में भी स्वतंत्र 38. सत्यता-१४ - विकसित चेतना ही मानव का शरण है 39. मानवीय व्यवस्था -१ 40. मानवीय व्यवस्था-२ 41. मानवीय व्यवस्था-३ 42. व्यक्ति में पूर्णता 43. समाज में पूर्णता-१ 44. समाज में पूर्णता-२ 45.समाज में पूर्णता-३ 46. समाज में पूर्णता-४ - सार्वभौम व्यवस्था का स्वरूप 47. मानव परम्परा 48. राष्ट्र में पूर्णता 49. अन्तर्राष्ट्र में पूर्णता अथवा अखण्ड राष्ट्र में पूर्णता 50. मानव धर्म 51. धर्मनीति का आधार 52. राज्य नीति का आधार 53. राज्यनीति का आधार-२ 54. परिवार समूह सभा 55. परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था-३ 56. ग्राम, मोहल्ला परिवार समूह सभा 57. क्षेत्र सभा 58. मंडल परिवार सभा 59. मंडल समूह परिवार सभा 60. मुख्य परिवार राज्य सभा 61. प्रधान परिवार राज्य सभा 62. विश्व परिवार राज्य सभा 63. उत्पादन विधि-१ 64. उत्पादन विधि -२ 65. अनुगमन-१- स्थूल से सूक्ष्म 66. अनुगमन-२ सूक्ष्म से कारण 67. अनुगमन-३ - कारण से महाकारण 68. मांगल्य-१ - जीवन मांगल् 69. सर्वमांगल्य 70. महा मांगल्य - Not Available! 71. सर्वमांगल्य 72. शिक्षा में पूर्णता 73. सर्वशुभ, मानव परम्परा में कैसे बने 74. सह-अस्तित्ववाद क्यों कहा 75. अस्तित्व ही सह–अस्तित्व 76. जीवन ज्ञान 77. मानव जाति एक 78. मानव धर्म एक 79. व्यवस्था, आचरण का योग 80. अखण्ड समाज के आधार पर सार्वभौम व्यवस्था होता है 81. व्यवहार, विचार, अनुभव शुद्धि का स्वरूप 82. व्यवहार शुद्धि 83. विचार शुद्धि 84. अनुभव शुद्धि 85. कार्य शुद्धि 86 - जीने का प्रमाण 87. जीने का क्रम- विचार क्रम, अनुभव क्रम 88. जागृति रूप में विचार क्रम 89. अनुभव क्रम 90. ज्ञानावस्था का क्रम 91. ज्ञानावस्था नैसर्गिक है 92. विचार क्रम 93. कार्य-व्यवहार क्रम 94. अखण्डता, सार्वभौमता क्रम 95. अखण्डता सार्वभौमता-२ 96. विकसित चेतना-३ 97. अखण्डता, सार्वभौमता ही मानव की प्रतिष्ठा है 98. अखण्डता, सार्वभौमता ही मानव परम्परा है 99. अखण्डता, सार्वभौमता ही मानव परम्परा का वैभव है 100. अखण्डता सार्वभौमता ही मानव परम्परा है 101. सुख शांति संतोष आनंद 102. मानव प्रगतिशील है 103. मानव में सामर्थ्य 104. मानव ही अखण्डता, सार्वभौमता का धारक-वाहक है 105. मानव ही शांति, अशांति का धारक वाहक है, कारकता के साथ 106. मानव ज्ञानावस्था में होना ही अखण्डता, सार्वभौमता का आधार है 107. मानव ही संतुलन, स्वराज्य का कामना करता है 108. मानव में श्रेय प्रवृत्ति 109. मानव ही ज्ञानावस्था में है प्रमाण का आधार 110. मानव ही सच्चाई का धारक-वाहक है 111. मानव ही सुखी होना चाहता है, समझदारी इसकी पूर्व भूमि है 112. मानव सदा-सदा सुखी रहकर ही विधिवत जीना चाहता है 113. मानव ही सुखी होकर व्यवस्था में जीता है 114. मानव ही अखण्डता, सार्वभौमता के साथ सुखी होना सहज है 115. अखण्डता, सार्वभौमता को मानव स्वीकारता है 116. मानव ही विवेक और विज्ञानपूर्वक जी सकता है, तभी परम्परा स्वस्थ हो सकता है 117. मानव जाति एक 118. मानव जीवन और शरीर का संयुक्त रूप है 119. सार्वभौमता, अखण्डता विधि से ही मानव कुल समझदारी का एकरूपता में आता है 120. मानव ही सृष्टि का धारक वाहक है Not Available!

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