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'त्याग' एवं 'भोग' के मार्ग हम मानवों के लिए सार्थक नहीं हुए हैं | आध्यात्मवाद एवं भौतिकवाद मानव प्रयोजन को स्पष्ट नहीं कर पायें |
मानव को यदि इस धरती पर रहना है, वर्तमान के जीवन शैली पर पुनर विचार करना ही होगा |
सहअस्तित्व नित्य वर्तमान और प्रभावी है |
मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है |
The study related to the knowledge of the conscious 'jeevan' was obtained via the method of 'existence-based human-centered contemplation'. Such attainment was received by A.Nagraj, a resident of Bhajnashram, Amarkantak.
I, Nagraj, hereby testify that I have understood 'existence-based human-centered contemplation' through (the method of meditative) sadhana, samadhi and sanyama. I did sadhana (perseverence) on this basis. The (Indian) scriptures state that the world is born from (pervasive) Brahman and that 'Brahman' is true (satya), while the world is 'false' (mithya). I undertook sadhana driven by this curiosity.
When I studied entire existence in the state of sanyam, it was revealed that nothing is born from Brahman. Entire nature is working in (pervasive) Brahman.
I identified and understood the following three aspects that have been missing from the idealistic and materialistic approaches of the past: (1) Knowledge of existence in the form of co-existence, (2) knowledge of the conscious entity 'jeevan', & (3) knowledge of humane conduct.
Every community to date has had some ideas about the aspect of 'humane conduct'. An assessment by the end of the twentieth century indicates that the conduct of a particular community is not acceptable to all human beings. (is not universal).
'Existence based human-centric thinking' became cognizable to human beings in the first decade of the twenty first century. Some scholars, scientists and lay people began accepting it. This made my mind accept that this is suitable for all human beings.
It is this basis on which I have tried to present it before humankind. I hope this benefits everyone.
जीवन ज्ञान संबंधी अध्ययन अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन विधि से प्राप्त हुआ। ऐसी प्राप्ति ए. नागराज, अमरकंटक, भजनाश्रम निवासी को प्राप्त हुआ।
मैं, नागराज, बता रहा हूँ कि साधना समाधि संयमपूर्वक अस्तित्वमूलक मानव केंद्रित चिंतन मुझे समझ में आया । मैं इस आधार पर साधना किया। ब्रह्म से जगत पैदा हुआ, ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या कहा जाता है शास्त्रों में । इस जिज्ञासावश मैं साधना किया। संयमपूर्वक जब संपूर्ण अस्तित्व को अध्ययन किया अध्ययन विधि से, तब ये पता चला ब्रह्म से कोई चीज पैदा नहीं हुआ है।
(व्यापक) ब्रह्म में संपूर्ण प्रकृति काम कर रहा है। विगत से, दोनों विधा से, आदर्शवादी, भौतिक विधा से, किये गये अध्ययन में छूटे हुए मुद्दे तीन बिंदुओं में मुझे समझ में आए, सह अस्तित्वरूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान। मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान संबंधी बात पर सभी समुदाय कुछ कुछ सोचा।
यह किसी समुदाय से आचरण सर्वमानव को स्वीकार नहीं, यह आंकलन बीसवी शताब्दि के अंत तक हुआ। इक्कीसवी शताब्दि के प्रथम दशक में अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन मानव गोचर होने लगा। कुछ ज्ञानी, विज्ञानी, अज्ञानियों में स्वीकृत होने लगा। इससे मेरा मन यह स्वीकार किया यह सर्वमानव उपयुक्त है।
इसी आधार पर सर्वमानव सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया। आशा है इससे सर्वमानव उपकृत हो।