श्रद्धेय नागराजजी के साथ १९८८-२०१६ पर्यंत अनेक विद्यार्थियों का उनके साथ संस्मरण एक संकलन के रूप में उपलब्ध है |
नागराजजी के ज्ञान एवं तर्कशैली से हम सभी चमत्कृत तो हुए हीं, साथ में उनके व्यकतित्व की विशालता, निरविरोधिता, आत्मीयता, निरभिमानता, हर्ष एवं उल्लास, ‘विशेषता से मुक्त व्यवहार’- एक गुरु का दया, पिता का संरक्षण, मित्र का प्रोत्साहन, साथी का दायित्व; शिष्यों के पात्रता विकास के अर्थ में कृपा, करुणा का प्रदर्शन, स्नेह, उदारता, धीरता, वीरता, ‘एक सामान्य परिवार मानव’; ‘गलत’ के समीक्षा में विधिवत पैनापन, नीर-क्षीर न्याय से हम प्रभावित भी हुए |
यह विगत के आदर्शवादी (अधिभौतिकवाद, आध्यात्मवाद, अधिदैविवाद) परिकलपना के ‘अच्छे व्यक्ति’, ‘ज्ञानी ऋषि’, ‘समाधिस्त संत’, ‘आप्त पुरुष’ से भिन्न ही था, थोडा मोड़ा मिलता -जुलता भी रहा |
आपका आचरण वास्तव में ‘विकल्प’ ही रहा | ‘जागृतिपूर्ण मानव के १२२ आचरण’ में से कई आचरण परस्परता में पहचान में आये |
उनके कथन अनुसार;
“हम जैसे करता हूँ, वह आसानी से दिखता है, हमारा व्यवहार को पहचानना पढ़ता है, हम जैसे सोचता हूँ, उसके लिए महीन बुद्धि लगाना पड़ेगा, हम जैसा समझा हूँ, उसके लिए सूक्ष्म बुद्धि लगाना पड़ेगा आपको | अभी आदमी जो है, अपने रूचि या कल्पना अनुसार हमको देखता है, हमारे आचरण के किसी भाग को रिजेक्ट कर देता है (नकार देता) ”
यह एक पूर्ण जागृत मानव के आचरण का जीता – जागता उदाहरण रहा | हमारे लिए एक मार्गदर्शिका के रूप में है |
‘सान्निध्य’ उनके व्यक्तित्व के एक स्मारिका के रूप में प्रस्तुत है – हमारे लिए अनुकरणीय है |
डाउनलोड करें: नागराजजी के साथ विद्यार्थी संस्मरण -‘सान्निध्य’
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