Social Order (५ आयामी समाज व्यवस्था)

 

परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना

 * स्त्रोत = अवर्तानशील अर्थशास्त्र , संस २, अध्याय १२ 

 स्वराज्य व्यवस्था के लिए पूर्व तत्परता एवं आंकलन

  •  स्वराज्य सभा
  •  शिक्षा-संस्कार व्यवस्था
  •  उत्पादन-कार्य व्यवस्था
  • ‘. स्वायत्त सहकारी विनिमय-कोष व्यवस्था
  •  स्वास्थ्य-संयम व्यवस्था
  •  न्याय-सुरक्षा व्यवस्था

ऋ. मूल्यांकन, प्रोत्साहन नियंत्रण प्रक्रिया

  • विकास (जागृति) के लिए किये गये व्यवहार को पुरूषार्थ, निर्वाह के लिए किये गये प्रयास को कर्तव्य तथा भोग के लिए किये गये व्यवहार को विवशता के नाम से जाना गया है।
  • भोगरुपी आवश्यकताओं की पूर्ति इसलिए संभव नहीं है कि वह अनिश्चित एवं असीमित है। कर्तव्य की पूर्ति इसलिए संभव है कि वह निश्चित व सीमित है। यही कारण है कि कर्तव्यवादी प्रगति शांति की ओर तथा भोगवादी प्रवृत्ति अशांति की ओर उन्मुख है।

 

 स्वराज्य व्यवस्था के लिए पूर्व तत्परता एवं आंकलन

ग्राम स्वराज्य व्यवस्था को आरंभ करने के पूर्व यह आवश्यक है कि उस ग्राम के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर ली जाय। इस जानकारी, सर्वेक्षण एवं आंकलन के आधार पर ग्राम स्वराज्य व्यवस्था की विस्तृत योजना बनायी जाये। जानकारी का प्रकार निम्न होगा :-

ग्राम का नाम, जिला, पोस्ट ऑफिस, पिन कोड, प्रान्त, स्थानीय तापमान, वर्षा।

गाँव की जनसंख्या, आयु, वर्ग, ी, पुरूष, ब_े, लड़का, लड़की के आधार पर।

प्राप्त शैक्षणिक स्थितियों, योग्यताओं का आंकलन 10 वर्ष से _ऋ वर्ष, _‘ वर्ष से 10 वर्ष और 10 वर्ष से ऊपर कितने साक्षर हैं, कितने नहीं। कहाँ तक प$ढे हैं ?

कितने लोग उत्पादन, नौकरी, मजदूरी, ग्राम-शिल्प, हस्त-कला, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग में कार्य कर रहे हैं। कितने लोग बेरोजगार हैं।

‘.          कितने व्यापार करने में व्यस्त हैं। कितनी दुकानें हैं और कितने इन पर आश्रित हैं।

गाँव की सामान्य सुविधाओं का आंकलन :-

गाँव व गाँव के भू-क्षेत्र, जलवायु समीपस्थ वन, वन-खनिज, वन-सम्पदा, वनौषधियों का आंकलन।

आवास, ईंधन, प्रकाश, पीने का पानी, जल-मल व्यवस्था, पाठशाला, ऊर्जा ोतों, सड़क व्यवस्था, डाक घर, बैंक, सांस्कृतिक भवन, तालाब, नहर, नदी, तलीय जल स्रोत आदि का आंकलन व सर्वेक्षण।

उत्पादन संबंधी आंकलन :-

कृषि भूमि, पड़ती भूमि कृषि एवं वन संभावित भूमि। सिंचाई व्यवस्था, जल के स्रोत, तालाब, नलकूप, नहर, नदी आदि सम्बन्धी स्थिति और संभावनाओं का आंकलन।

फसलों के किस्म, प्रकार, कृषि उपज, तादाद, वर्ष-फसल चक्र, स्थानीय अभाव, समस्याएं व संभावनाएं।

कृषि सम्बन्धी तकनीक व ज्ञान में पारंगत-व्यक्तियों की संख्या। क्या वे अन्य को पारंगत बना सकते हैं ?

ऊर्वरक व्यवस्था, गोबर, कम्पोस्ट खाद व रासायनिक खादों के उपयोग के सम्बन्ध में जानकारी।

बीजों के प्रकार, उनके बारे में जानकारी। कृषि सम्बन्धी औजारों, यंत्रों, कीटनाशक, दवाइयों आदि की उपलब्धता व अभ्यास के बारे में जानकारी।

पशुधन के बारे में पूरी जानकारी। उनकी तादाद, नस्ल, प्रकार के अनुसार। कितने कृषक, कृषि के साथ गौशाला रखते हैं ? कितने गोबर गैस प्लांट हैं ? कितना लगना है ?

हस्त शिल्प सम्बन्धी उत्पादन जैसे – चित्रकला, मूर्तिकला, शिल्प कला, बुनाई, क$ढाई, छपाई, रंगाई, बधाई पत्र, सूत कातना इन ग्रेविंग आदि में कितने लोग व्यस्त हैं ? उनसे उपलब्ध तकनीक व विशेषता आदि का आंकलन।

ग्राम शिल्प सम्बन्धी उत्पादन जैसे धातु कला, रेशम, काष्ठ कला, मिट्टी और चर्म कला आदि में कितने लोग प्रशिक्षित व व्यस्त हैं। इनमें उपलब्ध तकनीक व विशेषज्ञता का आंकलन। कुटीर उद्योग द्वारा उत्पादन कार्यों में कितने लोग व्यस्त हैं ? वे क्या व कितना बना रहे हैं? इसी तरह ग्रामोद्योग के बारे में आंकलन। सेवा कार्यों में लगे व्यक्तियों का सर्वेक्षण।

विनिमय सम्बन्धी आंकलन :-

सभी उत्पादित वस्तुओं की संख्या, तादाद, प्रकार, उपयोगिता व मूल्य। वर्तमान में विनिमय व्यवस्था का आंकलन। कितनी दुकानें हैं, कितने व्यक्ति क्रय-विक्रय कार्य में लगे हुए हैं। गोदाम आदि स्टोरेज व्यवस्था का आंकलन।

स्थानीय रूप से आवश्यक वस्तुएँ जो बाह्य बाजारों से खरीदी और बेची जाती हैं।

शिक्षा सम्बन्धी आंकलन :-

पाठशाला है या नहीं। यदि है तो कहाँ तक प$ढाई होती है ? कितने विद्यार्थी हैं ? कितने शिक्षक हैं ? आयु, वर्ग के आधार पर शिक्षा का सर्वेक्षण। शिक्षा पाठ्यक्रम का निर्वाह कैसा है ? स्थानीय आवश्यकतानुसार शिक्षा दी जाती है या केवल किताबी ज्ञान दिया जाता है ? शिक्षा प्राप्त कर कितने व्यक्ति गाँव में रह रहे हैं ? कितने गाँव छोड़ दिए हैं ? महिलाओं व ब_ों में जागरूकता कैसी है ? कितने साक्षर हैं? कितने साक्षर होना शेष है ? आयु वर्ग के अनुसार।

निकटवर्ती तकनीकी व अन्य समाज सेवी संस्थाओं के सहयोग की संभावना।

स्वास्थ्य-संयम संबंधी आंकलन :-

जन्म व मृत्यु दर।

सीमित व सन्तुलित परिवार के प्रति ग्रामवासी कितने प्रतिशत जागरूक हैं ?

अनावश्यक आदतों का सर्वेक्षण (गांजा, भांग, तम्बाकू, चरस, शराब, अफीम, धूम्रपान, जुआ आदि बुरी आदतों) वर्गीकरण व उसके लिए व्यक्तियों का नाम आयु सहित आंकलन।

घरेलू चिकित्सा के प्रति जागरूकता और आंकलन।

‘.          स्थानीय रूप से उपलब्ध जड़ी-बूटियों के प्रकार व उनके औषधि के रूप में प्रयोग, उपयोग और संरक्षण संभावना।

सामान्य व विशेष चिकित्सा सुविधा का आंकलन।

चिकित्सालय और औषधालय है या नहीं ? व्यायाम शाला, खेल व्यवस्था, योग प्रशिक्षण, सांस्कृतिक भवन है या नहीं ?

            न्याय सुरक्षा सम्बन्धी आंकलन :-

ग्राम का प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता और पात्रता के अनुसार उत्पादन करता है या उत्पादन में भागीदार है या नहीं ? के रूप में उत्पादन न्याय का आंकलन।

उत्पादित वस्तुओं का शोषण विहीन पद्घति से कहाँ तक विनिमय, आदान-प्रदान हो रहा है-के रूप में विनिमय न्याय का आंकलन।

स्वधन, स्वपुरूष/स्वनारी, दया पूर्ण कार्यों और तन, मन, धन रूपी अर्थ के सदुपयोग के आधार पर, आचरण-न्याय का आंकलन।

सम्बन्धों के साथ विश्वास निर्वाह के रूप में, व्यवहार-न्याय का आंकलन।

‘.          वर्तमान में कितने अपराध और अपराधी हैं ? कितने अपराध जमीन जायदाद सम्बन्धी है ? नारी-पुरूष सम्बन्धों से संबंधित अपराध कितने दर्ज हैं ? ऐसे दर्ज अपराधों की संख्या कितनी है जिनका निर्णय होना शेष है ?

वर्तमान न्याय-व्यवस्था के प्रति मानसिकता कैसी है ?

गाँव सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं का आंकलन व वर्तमान में सुरक्षा व्यवस्था कैसी है ?

 स्वराज्य सभा

ग्राम का प्रत्येक परिवार दस (10) व्यक्तियों के स्वरूप में होगा। परिवार का प्रत्येक सदस्य मिलकर परिवार सभा का गठन करेंगे। परिवार सभा के सब सदस्य मिलकर एक ऐसे व्यक्ति को प्रतिनिधि के रूप में चुनकर परिवार समूह सभा के लिए निर्वाचित करेंगे जो समाधान सहित परिवार में समृद्घिपूर्वक जीते हों।

इस प्रकार 10 परिवारों के प्रधानों से मिलकर एक ‘‘परिवार समूह सभा’’ का गठन किया जायेगा। ऐसे प्रत्येक 10 ‘‘परिवार समूह सभा’’ से एक व्यक्ति को, ग्राम-सभा के लिए निर्वाचित करेगा। इसी प्रकार 10 परिवार समूहों से निर्वाचित 10 सदस्य, ग्राम सभा का गठन करेंगे, जिसमें से एक ग्राम सभा का प्रधान होगा। सामान्यत: सौ परिवार मिलकर एक ‘‘ग्राम स्वराज्य सभा’’ का गठन करेंगे जिसमें 10 निर्वाचित सदस्य होंगे। यदि किसी ग्राम में 100 (एक सौ) परिवार से ‘यादा जनसंख्या है तो उसी 10 के गुणांक में उस ग्राम सभा के सदस्य होंगे। उदाहरण के लिए यदि गाँव की जनसंख्या 2000 (दो हजार) है तो उस ‘‘ग्राम सभा’’ में 10 सदस्य होंगे।

कालान्तर में उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक ग्राम सभा के निर्वाचित सदस्य अपने दस सदस्यों में से एक सदस्य को ‘‘ग्राम समूह सभा’’ में, ग्राम समूह सभा के दस सदस्य एक को, ग्राम क्षेत्र सभा, ग्राम क्षेत्र सभा के दस सदस्यों में से एक सदस्य को मंडल सभा, मंडल सभा के 10 सदस्यों में से एक सदस्य को ‘‘मंडल समूह सभा’’, मंडल समूह सभा के दस सदस्यों में से एक सदस्य को ‘‘मुख्य राज्य सभा’’, मुख्य राज्य सभा के दस सदस्यों में से एक सदस्य को ‘‘प्रधान राज्य सभा’’ व प्रधान राज्य सभा के दस सदस्यों में से एक सदस्य को ‘‘विश्व राज्य सभा’’ के लिये निर्वाचित करेंगे। इस प्रकार प्रत्येक स्तर में प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ 10 व्यक्तियों का मूल्यांकन कर अगली सभा के लिए सदस्य निर्वाचित करेंगे।

निर्वाचित सदस्यों की अर्हता :-

परिवार से लेकर ग्राम-सभा तक प्रत्येक निर्वाचित सदस्य की अर्हता निम्न होगी :-

  1. उसकी आयु कम से कम __ वर्ष होगी।
  2. वह समाधान सहित समृद्घि पूर्वक जीता होगा और व्यवसाय में स्वावलम्बी व व्यवहार में सामाजिक होगा।
  3. मानवीय आचरण के रूप में वर्तमान में प्रकाशित होगा।

कार्य क्षेत्र :-

  1. ग्राम सभा का कार्य 100 परिवारों के साथ होगा। उसका भू-क्षेत्र, ग्राम सीमा तक होगा। ग्राम सीमावर्ती क्षेत्र की समस्त भूमि, वन सम्पदा, खनिज, जल स्त्रोत व अन्य सम्पदाएं ग्राम सभा के अधिकार क्षेत्र में होंगी।
  2. ग्राम सभा, सामान्यत: ग्राम के सभी परिवारों का प्रतिनिधित्व करेंगी।

कार्यकाल :-

ग्राम सभा _ वर्ष के लिए निर्वाचित होंगी। हर चार वर्ष बाद परिवार व ‘‘परिवार समूह सभा’’ को अपने-अपने प्रतिनिधि को फिर से निर्वाचित करने का अधिकार होगा। हर ‘परिवार समूह सभा’ के दस सदस्यों को ग्राम सभा में फिर से नए सदस्यों को चुनने का अधिकार होगा।

कार्य शैली :-

प्रत्येक ग्राम सभा, ‘‘ग्राम स्वराज्य व्यवस्था’’ को स्थापित करने के लिए निम्न ‘ समितियों का गठन करेगी :-

  1. मानवीय शिक्षा-संस्कार समिति
  2. उत्पादन-कार्य व सलाहकार समिति
  3. लाभ-हानि मुक्त सहकारी विनिमय-कोष समिति
  4. स्वास्थ्य-संयम समिति
  5. मानवीय न्याय-सुरक्षा समिति

उपर्युक्त समितियाँ ग्राम सभा के मार्गदर्शन के आधार पर कार्य करेंगी। उपरोक्त समितियाँ क्रम से ग्राम में शिक्षा-संस्कार व्यवस्था, उत्पादन-कार्य व्यवस्था, विनिमय-कोष व्यवस्था, स्वास्थ्य-संयम व्यवस्था व न्याय सुरक्षा व्यवस्था को स्थापित करेंगी। उपरोक्त समिति के सदस्यों का मनोनयन ग्राम सभा करेगी। प्रत्येक मनोनीत सदस्य इन समितियों का अंशकालिक सदस्य होगा व वह अपनी समिति का कर्तव्य एवं दायित्यों का निर्वाह अपने निजी  व्यवसाय के अलावा करेगा। वयोवृद्घ ी व पुरूष, जो जीवन विद्या व वस्तु विद्या में पारंगत है उनको समितियों के अंशकालिक व पूर्णकालिक सदस्य होने का अवसर रहेगा। प्रत्येक समिति का विस्तृत कार्यक्रम अगले खंडों में विस्तार से दिया गया है। ग्राम स्वराज्य व्यवस्था के लक्ष्य निम्न होंगे :-

  1. गाँव के प्रत्येक मानव को मानवीय शिक्षा संस्कार से सम्पन्न करना।
  2. प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय में निपुणता-कुशलता को सहज सुलभ करना।
  3. प्रत्येक व्यक्ति को व्यवहार में सामाजिक बनाना।
  4. प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी उत्पादन कार्य में प्रवृत्त करना।
  5. उत्पादित वस्तुओं को विनिमय कोष द्वारा, लाभ हानि मुक्त पद्घति से क्रय-विक्रय करने की व्यवस्था प्रदान करना और ग्रामवासियों के लिए आवश्यकीय वस्तुओं को उपलब्ध कराना।
  6. प्रत्येक व्यक्ति को न्याय व सुरक्षा सहज सुलभ कराना। साथ ही सुधारवादी प्रक्रिया से, गलती व अपराधों का निराकरण करना।
  7. प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति अवधारणा पूर्वक संकल्पबद्घ करना, व्यायाम व खेलों के लिए प्रोत्साहित करना, संक्रामक रोग-विरोधी टीकों की उपयोगिता से अवगत कराना। साथ ही सहज व सस्ती चिकित्सा की व्यवस्था करना।
  8. प्रत्येक व्यक्ति में स्वयं के प्रति विश्वास, श्रेष्ठता के प्रति सम्मान, परिवार व्यवस्था के प्रति विश्वास व निष्ठा उत्पन्न करना।
  9. प्रत्येक व्यक्ति/परिवार अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन करे, ऐसा सुनिश्चित उपाय करना।
  10. ग्राम के लिए सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था करना।
  11. व्यक्तित्व व प्रतिभा का संतुलन उदय हो, ऐसा सुनिश्चित उपाय करना।
  12. प्रत्येक परिवार में भौतिक समृद्घि व बौद्घिक समाधान साक्षित करना, समस्त ग्रामवासियों की परस्परता में अभयता व सह-अस्तित्व चरितार्थ करना।

            कर्तव्य व दायित्व :-

ग्राम सभा पूर्ण रूप से ग्रामवासियों के प्रति उत्तरदायी होगी। साथ ही वह ‘‘ग्राम समूह सभा’’ के प्रेरणा व उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर निर्णय लेगी।

सर्वेक्षण, आंकलन व अध्ययन के आधार पर प्रत्येक परिवार के लिए समयबद्घ स्वराज्य कार्य योजना बनाएगी व क्रियान्वयन के लिए विभिन्न समितियों को आवश्यक निर्देश देगी।

ग्राम की पाँचो समितियों के साथ उनके अपने-अपने लक्ष्य प्राप्त करने में पूर्ण सहयोग देगी व उनके लिए जो भी सुविधायें, तकनीकी ज्ञान आदि की आवश्यकता होगी उसे उपलब्ध करायेगी।

‘‘विनिमय कोष’’ व सरकारी बैंक के बीच संयोजन (एजेन्सी) का कार्य करेगी।

‘.          पाँचों समितियों के कार्यों का समय-समय पर मूल्यांकन करेगी व उन्हें आवश्यक निर्देश देगी।

सर्वेक्षण, आंकलन, अध्ययन व प्राथमिकताओं के आधार पर ग्राम में सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था करेगी। इस दिशा में यदि किसी समिति व अन्य संस्थाओं के सहयोग की आवश्यकता हुई तो उसे प्राप्त करेगी।

     निम्न सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था ग्रामसभा द्वारा की जायेगी –

प्रत्येक परिवार के लिए आवास का प्रावधान। इसके लिए स्थानीय व्यक्तियों व वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग किया जावेगा।

शोधन विधि द्वारा शुद्घ व पवित्र पीने के पानी की व्यवस्था।

पेयजल व मल जल की व्यवस्था करना।

कृषि के साथ पशु पालन आवश्यक होने के कारण ‘‘गोबर गैस प्लांट’’ द्वारा, गोबर गैस गाँव में सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध कराना। प्राकृतिक गैस उपलब्ध होने की स्थिति में, उसका सर्वाधिक उपयोग करने की, प्रणाली को विकसित करना।

‘.          गोबर खाद व कम्पोस्ट खाद के लिए व्यापक व्यवस्था करना।

सौर-ऊर्जा का सर्वाधिक प्रयोग करने की प्रणाली विकसित करना ताकि उसका उपयोग, पानी पंप करने, खाना पकाने, वाष्पीकरण, अनाज सुखाने, ठंडा या गर्म करने में किया जा सके, जिससे लकड़ी, कोयला आदि परंपरागत ईंधनों को जलाने से रोका जा सके। इसी संदर्भ में पवन चक्की व जल प्रवाह शक्ति की उपयोगिता की संभावना का पता लगाना व यदि संभव हुआ तो क्रियान्वयन करना।

प्रत्येक घर के साथ शौचालय व सामूहिक शौचालय की व्यवस्था करना।

ऋ.        सड़क मार्ग, रेल, यातायात-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व निकट की मंडियों व बाजारों की सड़कों से जोड़ना।

‘.          दूरभाष व दूरसंचार सेवा, डाक घर, बैंक आदि की व्यवस्था करना।

10.       ग्राम के लिए पाठशाला, चिकित्सा केन्द्र, विनिमय-कोष के लिए भवन, गोदाम, बहुद्देश्यीय भवन की व्यवस्था करना जो न्याय सभा, संबोधन सभा, सांस्कृतिक-सभा, विवाह व मिलन-सभा, प्रार्थना सभा, स्वागत सभा व छाया के अंदर खेलने के लिए उपयोगी रहेगा।

परिवार समूह व परिवार प्रतिनिधि के कर्तव्य एवं दायित्व :-

परिवार प्रतिनिधि, सदस्यों के साथ व्यवहार, आचरण, स्वास्थ्य, उत्पादन व उत्पादन संबंधी साधनों के संदर्भ में स्वयं प्रमाणिक रहते हुए, उनके अनुरूप सभी सदस्यों को होने के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने रहेंगे।

परिवार प्रतिनिधि, परिवार के अन्य सदस्यों का मूल्यांकन करेंगे। परिवार प्रतिनिधि का मूल्यांकन, परिवार समूह सभा करेगा। आचरण के लिए मूल्यांकन का आधार स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष व दया पूर्ण कार्य रहेगा।

व्यवहार के मूल्यांकन का आधार मानव व नैसर्गिक संबंधों व उनमें निहित मूल्यों की पहचान व निर्वाह से है। साथ ही तन,मन, धन रूपी अर्थ के सदुपयोग, सुरक्षा के आधार पर नैतिकता का मूल्यांकन किया जायेगा।

परिवार में किसी से गलती होने की स्थिति में सुधारने का कर्तव्य, परिवार के सभी सदस्यों का होगा। इसमें परिवार प्रतिनिधि उभय पक्षीय प्रेरक का कार्य करेगा।

परिवार सम्बन्धी समस्त जानकारी, जिसके आधार पर परिवार के सदस्यों को शिक्षा-संस्कार, उत्पादन कार्य आदि में लगाना है, के लिए सभी तथ्यों को एकत्रित कर, ग्राम सभा को उपलब्ध कराने का कर्तव्य, परिवार प्रतिनिधि का होगा। परिवार में यदि कोई व्यक्ति, किसी विशेष योग्यता, हस्तकला, हस्त-शिल्प, कृषि व अन्य तकनीकी या साहित्य कला में माहिर है तो यह जानकारी भी, ग्राम की सम्बन्धित समिति को उपलब्ध कराएगा।

‘.          परस्पर परिवारों के विवादों व उत्पन्न कठिनाइयों के निवारण का दायित्व उन परिवार के प्रतिनिधि व परिवार समूह सभा का होगा। परिवार समूह सभा द्वारा विवाद हल न होने की स्थिति में ही विवाद ‘‘न्याय सुरक्षा-समिति’’ के पास जायेगा।

 शिक्षा-संस्कार व्यवस्था

ग्राम में शिक्षा-संस्कार व्यवस्था का संचालन ‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ करेगी। शिक्षा-संस्कार समिति में कम से कम एक व्यक्ति होगा या अधिक से अधिक तीन व्यक्ति होंगे।

‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ के सदस्यों की अर्हता :-

  • शिक्षा-संस्कार समिति के सदस्यों की अर्हताएं निम्न प्रकार होंगी :-
  • प्रत्येक सदस्य जीवन-विद्या एवं वस्तु-विद्या में पारंगत रहेगा।
  •  वह व्यवहार में सामाजिक व व्यवसाय में स्वावलम्बी होगा।
  •  उसमें स्वयं में विश्वास व श्रेष्ठता के प्रति सम्मान करने का प्रमाण रहेगा।
  • प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलित होने का प्रमाण रहेगा।

शिक्षा-संस्कार व्यवस्था के मूल उद्देश्य :-

प्रत्येक मानव को –

  1. व्यवहार में सामाजिक।
  2. व्यवसाय में स्वावलम्बी।
  3. स्वयं के प्रति विश्वासी।
  4. श्रेष्ठता के प्रति सम्मान करने में पारंगत करना जिससे व्यक्तित्व व प्रतिभा का संतुलन हो सके।
    1. शिक्षा-संस्कार व्यवस्था का स्वरूप :-
    2. प्रत्येक मानव को व्यवहार व्यवसाय (उत्पादन) शिक्षा में पारंगत बनाना।
    3. प्रत्येक मानव को व्यवसाय (तकनीकी शिक्षा) शिक्षा में पारंगत कर एक से अधिक व्यवसायों में स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर निपुण व कुशल बनाना।
    4. प्रत्येक मानव को साक्षर बनाने।
    5. ‘‘ग्राम सभा’’ पाठशाला की व्यवस्था, स्थानीय आवश्यकतानुसार करेगी।
    6. आयु वर्ग के आधार पर शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।
      1. शिक्षा की व्यवस्था निम्नलिखित कोटि के ग्रामवासियों के लिए की जावेगी।
      2. बाल शिक्षा
      3. बालक जो स्कूल छोड़ दिए हैं व दस वर्ष से अधिक आयु के हैं, ऐसे ब_ों को 10 वर्ष के अन्य अशिक्षित व्यक्तियों के साथ व्यवहार शिक्षा व व्यवसाय शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था रहेगी।
      4. 10 वर्ष की आयु से अधिक ी पुरूषों को साक्षर बनाकर, व्यवहार शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था होगी।
      5. स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकता होने पर ी पुरूषों के लिए अलग शिक्षा व्यवस्था होगी जो कि ‘‘स्वास्थ्य-संयम समिति’’ के साथ मिलकर कार्य करेगी।
      6. व्यवसाय शिक्षा के लिए ‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ ‘‘उत्पादन सलाहकार समिति’’ व ‘‘विनिमय-कोष समिति’’ के साथ मिलकर कार्य करेगी व सम्मिलित रूप से यह तय करेगी कि ग्राम की वर्तमान व भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर, किस-किस व्यक्ति को, किस-किस व्यवसाय की शिक्षा दी जाए। ‘‘विनिमय-कोष समिति’’ ऐसे उपायों की जानकारी देगी,जिनकी गाँव से बाहर अ’छी मांग है।
      7. कृषि, पशुपालन, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग व सेवा में जो पहले से पारंगत है, उनके द्वारा ही अन्य ग्रामवासियों को पारंगत करने की व्यवस्था की जायेगी।
      8. यदि उपर्युक्त शिक्षा में कभी उन्नत तकनीकी विज्ञान व प्रौद्योगिकी को समावेश करने की आवश्यकता होगी तो उसको समाविष्ट करने की व्यवस्था रहेगी।
      9. व्यवहार शिक्षा के लिए ‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ ‘‘स्वास्थ्य-संयम समिति’’ के साथ मिलकर कार्य करेंगी।
      10. मानवीयता पूर्ण व्यवहार (आचरण) व जीने की कला सिखाना व अर्थ की सुरक्षा तथा सदुपयोगिता के प्रति जागृति उत्पन्न करना ही, व्यवहार शिक्षा का मुख्य कार्य है।

रुचि मूलक आवश्यकताओं पर आधारित उत्पादन के स्थान पर मूल्य व लक्ष्य-मूलक अर्थात् उपयोगिता व प्रयोजनशीलता मूलक उत्पादन करने की शिक्षा प्रदान करना। जिससे प्रत्येक मानव में अधिक उत्पादन, कम उपभोग, असंग्रह, अभयता, सरलता, दया, स्नेह, स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष, बौद्घिक समाधान, प्राकृतिक सम्पत्ति का उसके उत्पादन के अनुपात में व्यय व उसके उत्पादन में सहायक सिद्घ हों। ऐसी मानसिकता का विकास करना, व्यवहार शिक्षा में समाविष्ट होगा।

कालान्तर में ‘‘ग्राम शिक्षा-संस्कार समिति’’ क्रम से ग्राम समूह, क्षेत्र सभा, मंडल सभा, मंडल समूह सभा, मुख्य राज्य समूह सभा, प्रधान राज्य सभा व विश्व राज्य की ‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ से जुड़ी रहेगी। अत: विश्व में कहीं भी स्थित कोई जानकारी ‘‘ग्राम-शिक्षा-संस्कार समिति’’ को उपरोक्त सात स्त्रोतों से तुरंत उपलब्ध हो सकेगी। पूरी जानकारी का आदान-प्रदान कम्प्यूटर व्यवस्था द्वारा आपस में जुड़ा रहेगा। इसी प्रकार अन्य चारों समितियाँ भी ऊपर तक आपस में जुड़ी रहेगी।

 उत्पादन कार्य व्यवस्था

ग्राम में हर तरह का उत्पादन व सेवा कार्य ‘‘ग्राम उत्पादन-कार्य सलाह समिति’’ द्वारा संचालित किया जायेगा। यह समिति अन्य समितियों के साथ मिलकर कार्य करेगी। यह समिति गाँव के प्रत्येक स्त्री पुरूष को, किसी न किसी उत्पादन कार्य में लगावेगी। स्थानीय सर्वेक्षण के आधार पर जिसका विस्तृत विवरण सर्वेक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत दिया जा चुका है, उत्पादन समिति प्रत्येक व्यक्ति को, उसकी वर्तमान अर्हता के आधार पर कोई उत्पादन कार्य करने की सलाह देगी व उनके लिए उस व्यक्ति को आवश्यक प्रशिक्षण व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराएगी। जो भी उत्पादन कार्य होना है वह मानव की सामान्य आकांक्षा (आवास, आहार, अलंकार) व महत्वाकांक्षा (दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण) सम्बन्धी आवश्यकताओं पर आधारित होगा।

‘‘उत्पादन कार्य सलाहकार समिति’’ ग्राम सभा के सहयोग से गाँव की सामान्य सुविधाओं को स्थापित करने में सहयोग देगी व आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराएगी। पर्यावरण सुरक्षा व पर्यावरण के साथ एक सूत्रता को सर्वो_ प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदूषण फैलाने सम्बन्धी कोई भी उत्पादन कार्य नहीं किया जायेगा।

ग्राम के कुछ आयाम निम्नानुसार होंगे।

  1. कृषि
  2. पशु-पालन
  3. वन व वनोपज
  4. खनिज
  5. हस्त शिल्प
  6. ग्राम शिल्प
  7. कुटीर उद्योग
  8. ग्रामोद्योग
  9. सेवा

कृषि :-

वर्तमान स्थिति में ग्राम की कृषि उपज, फसलों की किस्में प्रकार, तादाद, कृषि में व्यस्त धन-बल, कृषि भूमि, पड़ती भूमि, कृषि संभावित भूमि, सिंचाई, उर्वरक, व्यवस्था, पशुपालन व्यवस्था आदि के आधार पर ‘‘उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति’’ ग्राम सभा व विनिमय समिति के साथ मिलकर, एक ग्रामव्यापी कृषि योजना तैयार करेगी। जिसमें पशुपालन व ग्राम सीमावर्ती वन प्रबंध का समावेश होगा। योजना में पूरे ग्राम की स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर धान, गेहूँ, दलहन, तिलहन, मसाला, सुगन्धित वनस्पतियों, औषधियों, रेशा, कन्द जाति की उपजों, साग सब्जियों, फलों आदि की आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने का कार्यक्रम होगा।

योजना में निम्न कार्यों की व्याख्या करने का कार्यक्रम होगा।

स्थानीय रूप से जो कृषि में पारंगत है उनमें ग्राम के अन्य लोगों (जो कृषि कार्य कर रहे हैं या जिनको भविष्य में कृषि कार्य लगना है) को कृषि में पारंगत बनाने की व्यवस्था।

स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सिंचाई साधनों को एकत्रित करने की व्यवस्था। कृषि संभावित भूमि को, कृषि योग्य बनाकर उनका आबंटन (ऐसे व्यक्तियों को जिनके पास कृषि भूमि नहीं है।) की व्यवस्था।

बंजर भूमि में उपयोगी फलदार वृक्ष, जड़ी बूटियों को लगाने की व्यवस्था।

कृषि के साथ उपयोगी वृक्ष, चारा, साग सब्जियों, व सुगंधित वनस्पतियों की उन्नत प्रणाली को सुलभ (प्रशिक्षण व क्रियान्वयन) करने की व्यवस्था।

‘.          उन्नत बीज उपलब्ध कराने व तैयार कराने की व्यवस्था। गाँव व्यापी गोबर गैस व कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए व्यवस्था।

कृषि, फल, साग, सब्जियों में होने वाले रोगों के निवारण में, स्थानीय अनुभवों को सर्वाधिक उपयोग करने की व्यवस्था। रोगों के निवारण न होने की स्थिति में अन्य वाह्य प्राप्त स्रोतों के सहयोग से निवारण की व्यवस्था।

कृषि को उत्पादन ब$ढाने के लिए समस्त आवश्यकीय उपायों को सुलभ करने की व्यवस्था। कृषि सम्बन्धी समस्त समस्याओं को निराकरण उत्पादन सलाहकार समिति करेगी।

पशुपालन :-

कृषि के साथ पशुपालन अनिवार्य होगा। पशुपालन के साथ गोबर गैस प्लांट अनिवार्य होगा। गोबर गैस प्लांट स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कुछ परिवार मिलकर, सामूहिक रुप से या प्रत्येक परिवार के लिए लगाया जायेगा। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य खेत जोतने के अलावा गाँव में आवश्यकता से अधिक दूध, घी आदि का उत्पादन, गोबर गैस द्वारा गाँव में ईंधन व प्रकाश तथा खाद की पूर्ति करना होगा। पशुपालन इस अनुपात में करना होगा। जिससे गाँव की आवश्यकतानुसार खाद की पूर्ति, गोबर व कम्पोस्ट खाद पर्याप्त हो सके। साथ ही मिट्टी का लवणी करण, अम्लीय करण कठोरपन, व उर्वरक क्षमता में हो रहे ह्रास को पूरी तरह रोका जा सके।

प्रत्येक कृषक अपने खेत में इस प्रकार का फसल-चक्र अपनाएगा जिससे उसके पास जितने पशु हैं उसके लिए पर्याप्त मात्रा में चारा, घास, भूसी मिल सके। इस व्यवस्था में उन्हें पारंगत बनाने की व्यवस्था होगी।

पशुओं के रोग निवारण के लिए स्थानीय अनुभवों को सर्वाधिक उपयोग करने की व्यवस्था होगी। इन उपायों से रोग निवारण न होने की स्थिति में बाह्य विशेष चिकित्सा की व्यवस्था होगी।

उपरोक्त अर्हता को प्राप्त करने की व्यवस्था उत्पादन सलाहकार समिति करेगी। देश विदेश में शहद की बढ़ती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

स्थानीय मानसिकता व आवश्यकताओं के आधार पर भेड़, रेशम के की$डे, बकरी व अन्य पशुओं के पालन की व्यवस्था की जाएगी।

वन वनोपज व वनौषधि :-

गाँव सीमावर्ती वनों (यदि वे हैं तो) का प्रबंध, ‘‘उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति’’ द्वारा किया जायेगा। वनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रत्येक गाँव वासी की होगी। वन से वनोपज व वनौषधियों के संग्रह की व्यवस्था उत्पादन सलाहकार समिति करेगी। कुछ ग्राम वासियों की आजीविका का साधन वनोपज व वनौषधियों का संग्रह करना ही होगा। उनके द्वारा संग्रह करने के आधार पर ही विनिमय कोष क्रय कर उनका मूल्य देगा।

गाँव के लिए वनों से लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति सदुपयोगिता अनुसार ‘‘उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति’’ तय करेगी ताकि वनों के संरक्षण में कोई कमी न आये।

खनिज :-

स्थानीय विविध उत्पादनों, आवास निर्माण सड़क मार्ग आदि में लगने वाली खनिज वस्तुओं उचित स्थान से उपयोग करने की व्यवस्था ‘‘उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति’’ द्वारा होगी। यदि खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, व उसकी गाँव से बाहर भी मांग है, उस स्थिति में कुछ व्यक्ति खनिज-उत्पादन के आधार पर मूल्य ‘‘विनिमय-कोष’’ द्वारा दिया जायेगा। उत्पादित खनिजों का विनिमय, विनिमय कोष द्वारा ही किया जाएगा। उत्पादित खनिजों के स्थल में उनमें व्यवसाय मूल्य को स्थापित करने की व्यवस्था रहेगी।

हस्त शिल्प, हस्त कला संबंधी उत्पादन कार्य :-

स्थानीय रुप से उपलब्ध, जानकारी व आवश्यकताओं के आधार पर गाँव के कुछ सदस्यों को निम्न कार्यों में लगाया जाएगा। इसके लिए प्रशिक्षण व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था ‘‘उत्पादन-कार्य सलाह समिति’’ करेगी। सभी उत्पादित वस्तुओं को विनिमय-कोष समिति खरीदेगी व वह उसका उचित मूल्य देगी।

चित्र-कला, मूर्ति-कला, बुनाई, क$ढाई, छपाई, सिलाई दस्तकारी, रंगाई, सूत कातना, सूखा पत्ता, कागजों से अलंकारिक स्वरुप देने का कार्य, ग्रिटिंग्स कार्ड बनाने का कार्य, एम्ब्राइडरी, इनग्रेव्हिंग का कार्य, स्थानीय अनुभवों के आधार पर तत्काल क्रियान्वयन करना व उनको और ‘यादा कुशल, उन्नत और प्रोत्साहित करने की व्यवस्था होगी।

ग्राम-शिल्प :-

हस्त शिल्प की तरह कुछ व्यक्तियों को ग्राम शिल्प संबंधी कार्यों में लगाया जावेगा। यह कार्य निम्न में से हो सकते हैं :-

धातु कला, काष्ठ कला, कृषि संबंधी औजार, चर्म कला, बांस कला, फर्नीचर, रेशम उद्योग, कुम्हार सम्बंधी उत्पादन, मिट्टी के बर्तनों पर नक्काशी व अन्य तरह के खिलौने आदि बनाने का कार्य। विशेष कपड़ा बुनाई (स्थानीय अनुभव के आधार पर)।

कुटीर उद्योग :-

कुटीर उद्योग से सम्बन्धित उत्पादन कार्य :- हस्त करघा, रेशम उद्योग, कालीन व चटाई बनाना, साबुन, तेल, सेन्ट, क्रीम, दन्त-मंजन, शैम्पू व अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों का उत्पादन, पत्तों से दोना/कटोरी आदि बनाने का कार्य (जो कि रेलवे व ब्याह शादी व अन्य उत्सवों में उपयोग में लाए जा सकते हैं।) आटा चक्की, तेल घानी, धान कुटाई, गुड़ शक्कर बनाना, अचार, जाम, मुरब्बा, फलों का रस पेय पदार्थों का निर्माण, अगरबत्ती, काजल, जड़ी बूटियों पर आधारित दवाइयां।

उपर्युक्त सभी कुटीर उद्योगों के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराना।

ग्रामोद्योग :-

मिट्टी पर आधारित व स्थानीय मदद से उपलब्ध, क_े माल से आवास बनाने का उद्योग, फलों सब्जियों का डिब्बा बंद करना/संरक्षण, ग्राम के लिए आवश्यकीय औजार। कल पुर्जो का निर्माण स्थानीय रुप से उपलब्ध, क_े माल पर आधारित उद्योग, कृषि व आस पास के उद्योगों के लिए कल पुर्जो का उत्पादन, कूप, तालाब जलाशय, नहर, सड़क, बनाने के लिए जानकारी व व्यवस्था।

सेवा :-

धोबी, नाई, साइकिल, रेडियो, टी.व्ही., कृषि यंत्रों व अन्य यंत्रों की मरम्मत, सुधारने के लिए कुछ व्यक्तियों को लगाया जायेगा। यहां प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी, उन्हें उपलब्ध कराया जायेगा। इनके द्वारा लिया गया सेवा का प्रतिफल को, ग्राम सभा द्वारा तय किया जायेगा।

‘. स्वायत्त सहकारी विनिमय-कोष व्यवस्था –

गाँव में हर तरह का विनिमय ‘‘सहकारी विनिमय-कोष समिति’’ द्वारा संचालित ‘‘स्वायत्त सहकारी विनिमय-कोष द्वारा किया जायेगा। स्वायत्त का तात्पर्य समझदारी सहित आवश्यकता से अधिक उत्पादन। विनिमय कोष, गाँव की मुख्य संस्था होगी। इसका अपना अलग से संविधान होगा। यह संस्था लाभ-हानि मुक्त व्यवस्था पर कार्य करेगी। इसका मुख्य उद्देश्य गाँव के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उत्पादित वस्तुओं का क्रय करना व उनकी आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का विक्रय करना होगा। साथ ही यह कोष ‘‘उत्पादन-कार्य विनिमय सलाहकार समिति’’ व ‘‘शिक्षा समिति’’ के साथ मिलकर कार्य करेगी व व्यापारी करण के स्थान पर उत्पादनीकरण पर ध्यान देगी। विनिमय कोष की कार्य पद्घति निम्न प्रकार से होगी।

विनिमय कोष (बैंक) नौकरी की मानसिकता को हटाकर उत्पादन की मानसिकता को लाने के लिए शिक्षा समिति के साथ सहयोग करेगा। यह गाँव में रह रहे सब व्यापारियों को होडिंग (संग्रह) के स्थान पर उत्पादनीकरण का कार्य के लिए प्रेरणा, व प्रशिक्षण भी देगा। इस तरह लाभ-हानि मुक्त उत्पादन व विनिमय व्यवस्था जो कि श्रम के आदान प्रदान व आवर्तनशीलता पर आचरित होगी, को स्थापित करने में विनिमय कोष कार्य करेगा।

विनिमय व्यवस्था बैंकिग पद्घति पर आधारित होगी। प्रत्येक व्यक्ति जो स्थानीय सीमावर्ती निवासी है व उत्पादित वस्तुओं का विक्रय करता है और आवश्यकीय वस्तुओं का क्रय करता है, वह इस कोष का खातेदार (सदस्य) होगा। प्रत्येक व्यक्ति का खाता विनिमय कोष में होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादित वस्तुओं को विनिमय कोष को बेचेगा। वस्तु मूल्य निकटस्थ बाजार भाव के आधार पर तय होगा (निकटस्थ बाजार में जाकर बेचने से, जो दाम मिलेंगे उसमें परिवहन मूल्य घटा दिया जायेगा। विक्रय मूल्य निकटस्थ बाजार भाव के अनुसार तय होगा।

कोष इसी तरह बाहर (शहर व अन्य बाजारों) से वस्तुओं को थोक भाव खरीदेगा व अपने सदस्यों को उपरोक्त पद्घति से बेचेगा। इसी तरह कोष में गाँव के सदस्यों द्वारा, बेची हुई वस्तुएँ, जो स्थानीय आवश्यकता से बच जायेगी, उन्हें शहर व अन्य बाजारों में बेचेगा व उनका मूल्य प्राप्त करेगा। इस क्रय विक्रय से जो कुछ भी अनायास लाभ होगा, उसको गाँव की सामान्य सुविधाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए अर्पित किया जावेगा। यह कार्य ग्राम स्वराज्य सभा द्वारा संचालित किया जाएगा। इसी धन को गाँव के विकास पर खर्च किया जावेगा। कोष में प्रत्येक सदस्य की न्यूनतम राशि हमेशा जमा रहेगी ताकि कोष का कार्य सुचारु रुप से चलाया जा सके। जिसकी राशि नहीं होगी उसे कोष, ब्याज रहित ऋण देगा। जिसे वह सदस्य वस्तु का उत्पादन कर, कालान्तर में बैंक को विक्रय कर चुकता कर देगा।

जिन सदस्यों ने न्यूनतम से अधिक राशि, खाते में रखी है उनकी सहमति से, विनिमय कार्य के लिए आवश्यकता पड़ने पर, विनिमय कोष, उस धन राशि का उपयोग करेगा व अन्य राष्ट्रीय कृत बैंक से जो ब्याज मिलता है वह उनको देगा। यह विधि तब तक रहेगी, जब तक, बैंक व विनिमय-प्रणाली अलग-अलग रहेगी। पूरे देश में स्वराज्य व्यवस्था स्थापित होने पर लाभ-हानि मुक्त विनिमय प्रणाली स्थापित हो जाएगी।

गाँव से सभी प्रकार की कर वसूली का दायित्व विनिमय कोष का होगा। कर निर्धारण का कार्य ग्राम सभा करेगी।

संक्रमण काल में उपरोक्त बैंक का गारन्टी दार, राष्ट्रीय कृत सहकारी बैंक होगा जो आरंभ से उसे कार्यशील पूंजी व अन्य ऋण देगा। हानि की भर पाई करेगा। विनिमय-कोष ही आगे अपने सदस्यों को ऋण देगा व वह ही उनसे वसूली करेगा। प्रत्येक सदस्य जो ऋण लेगा वह उत्पादित वस्तुओं के रुप में विनिमय कोष का ऋण लौटा देगा।

विनिमय-कोष शनै:-शनै: सरकारी बैंक से ली गई पूंजी को लौटाता रहेगा। इस तरह सरकारी बैंक के रुपये का ज्यादातर उपयोग होगा।

आरंभ में समाज सेवी (प्रशिक्षण प्राप्त) व्यक्ति विनिमय कोष को चलावेंगे। बाद में स्थानीय व्यक्ति जब व्यवहार शिक्षा/व्यवसाय शिक्षा में पारंगत हो जावेंगे तब वह उस बैंक को चलावेंगे।

सौ परिवार समूह के गाँव के लिए औसतन तीन व्यक्ति विनिमय कोष को चलावेंगे। इसमें से एक व्यक्ति गाँव में उत्पादित वस्तुओं को, अन्य बाजार में बेचेगा व अन्य बाजारों से सामान क्रय कर, विनिमय बैंक में लाएगा। दूसरा व्यक्ति लेखा जोखा व खातों की देख-रेख करेगा। तीसरा व्यक्ति सामान का क्रय-विक्रय करेगा। व उनको भंडार में रखने की व्यवस्था करेगा। आवश्यकता पड़ने पर अन्य व्यक्तियों को भी विनिमय कोष में मनोनीत किया जा सकता है।

विनिमय-कोष के काम काज को सुगम बनाने के लिए कम्प्यूटर को प्रयोग में लाया जायेगा। कालान्तर में विनिमय-कोष व्यवस्था, पूरे राज्य व देश में, स्थापित हो जाने पर, ग्राम विनिमय-कोष क्रय से, ग्राम समूह क्षेत्र, जिला मंडल, मुख्य राज्य व प्रधान राज्य के विनिमय कोष समितियों के साथ आदान-प्रदान से जुड़ा रहेगी। ‘‘विनिमय-कोष’’ संविधान के अनुसार, कार्य करता रहेगा, जिसकी जिम्मेदारी विनिमय कोष समिति की होगी। जो समय-समय पर खातेदार सदस्यों की सामान्य बैठक बुलाकर, उनके सामने प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। सामान्य बैठक में बहुमत के आधार पर मार्ग-दर्शन प्राप्त कर सकेगा। विनिमय कोष समिति के कार्य का मूल्यांकन ग्राम सभा करेगी व समय-समय पर उन्हें मार्ग दर्शन देगी।

कृषि उपज और प्रौद्योगिकी उपज में श्रम मूल्य के आधार पर, मूल्यांकन को स्थापित करने वाली व्यवस्था रहेगी।

स्वास्थ्यसंयम व्यवस्था

ग्राम के सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं संयम की जिम्मेदारी, ग्राम स्वास्थ्य-संयम समिति की होगी। यह समिति शिक्षा-संस्कार समिति के साथ मिलकर कार्य करेगी। स्वास्थ्य-संयम संबंधी पाठ्यक्रम और कार्यक्रम को तैयार कर शिक्षा में सम्मिलित कराएगी। ग्राम चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था, योगासन, व्यायाम, अखाड़ा खेल कूद व्यवस्था, स्कूल के अलावा खेल मैदान (स्टेडियम), सांस्कृतिक भवन, क्लब आदि व्यवस्था का दायित्व, ग्राम स्वास्थ्य समिति का होगा समिति स्थानीय रुप से उपलब्ध जड़ी-बूटियों द्वारा औषधि बनाने के लिए आवश्यकीय व्यवस्था करेगी। इसके साथ ही पशु चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था का दायित्व भी स्वास्थ्य समिति का होगा। समिति ‘‘समन्वित चिकित्सा’’ (आयुर्वेद, एलोपैथी, होमियोपैथी, यूनानी, योग प्राकृतिक, मानसिक) के उन्नयन की व्यवस्था करेगी।

सब ग्राम वासियों को स्वास्थ्य व्यवहार, आचरण सम्बन्धी मूल्यों का मूल्यांकन, उपयोगिता व प्रयोजन मूलक पद्घति से, समिति व्यवस्था प्रदान करेगी। अलंकार, प्रसाधन कार्य, शरीर स्व’छता, महिलाओं व ब_ों को रोग-निरोधी टीके, और सीमित व संतुलित परिवार के रुप में व्यवहृत होने के लिए व्यवस्था प्रदान करेगी। ऐसी जागृति के लिए एक व्यापक कार्यक्रम को समिति चलाएगी। सामान्य रुप में घटित अस्वस्थता को दूर करने के लिए, घरेलू  चिकित्सा में प्रत्येक परिवार को अथवा प्रत्येक परिवार में एक व्यक्ति को प्रवीण बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाएँगे। घरेलू चिकित्सा से रोग शमन न होने की स्थिति में स्थानीय केन्द्र द्वारा चिकित्सा होगी। वहां राहत न मिलने की स्थिति में, निकटवर्ती चिकित्सा केन्द्र में पहुँचाने और चिकित्सा सुलभ कराने की व्यवस्था स्वास्थ्य संयम समिति करेगी।

 न्यायसुरक्षा व्यवस्था

न्याय-सुरक्षा समिति – ग्राम सभा के द्वारा मनोनीत की जायेगी। यह समिति गाँव की सम्पूर्ण व्यवहार सम्बन्धी विवादों को हल करने के लिए स्वतंत्र होगी व बाह्य हस्तक्षेपों से मुक्त रहेगी। न्याय प्रक्रिया का स्वरुप स्वयं स्फूर्त सुधार प्रणाली पर आधारित रहेगा ग्राम-न्यायलय में सम्पूर्ण प्रक्रिया मानवीय संचेतना वादी व्यवहार पद्घति पर आधारित होगी। चूंकि प्रत्येक मानव को, मानवीयता पूर्ण पद्घति, प्रणाली व नीति पूर्वक जीने का अधिकार समान है। इसके अनुसार गाँव में मानवीयता पूर्ण आचरण पद्घति, मानवीयता पूर्ण व्यवहार प्रणाली व अर्थ (तन, मन, धन) की सुरक्षात्मक व सदुपयोगात्मक नीति रहेगी। जो भी व्यक्ति इस व्यवस्था की निरंतरता बनाए रखने में हस्त-क्षेप करेगा, वह सुधरने के लिए बाध्य होगा। मानव अज्ञान, अत्याशा और अभाव वश ही गलती, अपराध तथा तन, मन, धन रुपी अर्थ का अपव्यय करता है। यह व्यवहार मानवीयता और सामाजिकता व व्यवस्था की दृष्टि से सहायक नहीं है। न्याय-सुरक्षा समिति, न्याय सुलभता और सुरक्षा कार्य में निष्ठान्वित तथा प्रतिज्ञाबद्घ रहेगी।

न्याय-सुरक्षा समिति, मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय प्रदान करेगी। मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय व्यवस्था के चार प्रधान आयाम है :-

(1) चरित्र में न्याय

(2) व्यवहार में न्याय

(3) उत्पादन में न्याय

(4) विनिमय में न्याय।

_चरित्र में न्याय :-

स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष और दया पूर्ण कार्य का वर्तमान और उसका मूल्यांकन, चरित्र में न्याय का स्वरूप है। स्वधन का तात्पर्य श्रम नियोजन का प्रति फल, कला तकनीकी, विद्वत्ता विशेष प्रदर्शन, प्रकाशन किए जाने के फलस्वरूप प्राप्त पुरस्कार और उत्सवों के आधार पर किया गया आदान-प्रदान के रूप में प्राप्त, पारितोष रूप में प्राप्त धन या वस्तुएँ से है।

स्वनारी, स्वपुरूष :-

विवाह पूर्वक स्थापित दाम्पत्य संबंधी जिसका पंजीयन ग्राम सभा में होगा।

दया पूर्ण कार्य :-

  • अखण्ड समाज सूत्र सहज मानव मूल्य स्थापित मूल्य व शिष्ट मूल्यों की पहचान और उसका निर्वाह।
  • सम्बन्धों की पहिचान और निर्वाह क्रम में तन, मन, धन, रुपी अर्थ का अर्पण समर्पण।
  • निस्सहाय, कष्ट ग्रस्त, रोग ग्रस्त और प्राकृतिक प्रकोपों से प्रता$िडत व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना।
  • प्राकृतिक, सामाजिक और बौद्घिक नियमों का पालन आचरण पूर्वक प्रमाणित करते हुए मानवीय परंपरा के लिए प्रेरक होना।
  • जो जैसा जी रहा है, कार्य कर रहा है उसका मूल्यांकन करना। जहां-जहां सहायता की आवश्यकता है वहां सहायता प्रदान करना। समझा हुआ को समझाना, सीखा हुआ को सीखाना, एवं किया हुआ को करना ही सहायता का स्वरूप।
  • पात्रता हो उसके अनुरूप वस्तु न हो, उसके लिए वस्तु को उपलब्ध कराना ही दया है।
  • व्यवहार में न्याय (मानवीय व्यवहार) :-

(मानवीय व्यवहार) मानव तथा नैसर्गिक सम्बन्धों व उनमें निहित मूल्यों की पहिचान और उसका निर्वाह करना। मानव परंपरा में मानव सम्बन्ध प्रधानत: सात प्रकार से गण्य है:-

  1. माता     –           पिता.
  2. पुत्र        –           पुत्री.
  3. गुरू       –           शिष्य.
  4. भाई      –           बहन.
  5. मित्र      –           मित्र.
  6. पति      –           पत्नी.
  7. स्वामी   –           सेवक (साथी सहयोगी)

उपरोक्त सम्बन्धों में निहित मूल्य निम्न है :-

स्थापित मूल्य      शिष्ट मूल्य

  1. विश्वास सौम्यता.
  2. स्नेह       निष्ठा.
  3. कृतज्ञता सौजन्यता.
  4. गौरव     सरलता.
  5. ममता    उदारता.
  6. वात्सल्य             सहजता.
  7. सम्मान सौहार्द्र.
  8. श्रद्घा      पूज्यता.
  9. प्रेम       अनन्यता.

मानव सम्बन्धों में साम्य मूल्य विश्वास तथा पूर्ण मूल्य प्रेम है। बिना विश्वास के कोई भी सम्बन्ध का निर्वाह संभव नहीं है। सम्बन्धों में विश्वास का निर्वाह न कर पाना ही अन्याय है।

मानव के नैसर्गिक सम्बन्ध तीन प्रकार से गण्य है :-

  1. पदार्थावस्था के साथ सम्बन्ध।
  2. प्राणावस्था (अन्य, वनस्पति) के साथ सम्बन्ध।
  3. जीवावस्था (पशु पक्षी आदि मानवेतर जीवों) के साथ सम्बन्ध।

उपरोक्त संबंधों में उपयोगिता मूल्य दो प्रकार से गण्य है:-

  1. परस्पर उपयोगिता पूरकता, उदात्तीकरण के रूप में रचना-विरचना क्रम में उपयोगिता।
  2. परमाणु में विकास क्रम में उपयोगिता।

उपयोगिता का स्वरूप निम्न है:-

  1. प्राकृतिक सम्पदा (खनिज, वनस्पति) का उसके उत्पादन के अनुपात में उपयोग संतुलन के अर्थ में।
  2. प्राकृतिक सम्पदा के उत्पादन में विघ्न न डालना एवं प्राकृतिक सम्पदा के उत्पादन में सहायक बनना। (नैसर्गिक पवित्रता को समृद्घ बनाए रखे बिना, मानव स्वयं समृद्घ नहीं हो सकता।)
  3. उत्पादन में न्याय
    1. प्रत्येक व्यक्ति द्वारा आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना।
    2. प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने योग्य कुशलता व निपुणता को स्थापित करना, जिसका दायित्व शिक्षा-संस्कार समिति को होगा।
    3. उत्पादन के लिए व्यक्ति में निहित क्षमता योग्यता के अनुरूप उसे प्रवृत करना जिसका दायित्व ‘‘उत्पादन कार्य सलाहकार समिति’’ का होगा।
    4. उत्पादन के लिए आवश्यकीय साधनों को सुलभ करना इसका दायित्व ‘‘ सहकारी विनिमय कोष समिति’’ का होगा।
    5. उत्पादन कार्य सामान्य आकांक्षी (आहार, आवास, अलंकार) महत्वाकांक्षी (दूर दर्शन, दूर गमन, दूर श्रवण) सम्बन्धी वस्तुओं के रुप में प्रमाणित होना।
    6. ‘‘ उत्पादन कार्य सलाह समिति’’ व ‘‘विनिमय कोष समिति’’ संयुक्त रुप से सम्पूर्ण ग्राम की उत्पादन सम्बन्धी तादात, गुणवत्ता व श्रम मूल्यों का निर्धारण करेगी।

विनिमय में न्याय

  1. उत्पादित वस्तु के विक्रय के लिए क्रय आदान-प्रदान सुलभ करना।
  2. विनिमय प्रक्रिया प्रथम चरण में, श्रम मूल्य को वर्तमान में प्रचलित प्रतीक मुद्रा के आधार पर मूल्यांकित करने की व्यवस्था रहेगी। जैसे स्थानीय उत्पादन को, जहां उसको बेचना है, उस मंडी की दरों पर आधारित उसका क्रय मूल्य निर्धारित होगा। ग्राम की आवश्यकता के लिए अन्य बाजारों से, वस्तुओं का विक्रय मूल्य, उन बाजारों के क्रय मूल्य पर आधारित होगा।
  3. द्वितीय चरण के श्रम के आधार पर प्रतीक मुद्रा को मूल्यांकन करने की व्यवस्था होगी व उसी के आधार पर क्रय विक्रय कार्य सम्पन्न होगा।
  4. तृतीय चरण में श्रम मूूल्य के आधार पर, वस्तु मूल्य का मूल्यांकन होगा जिसका आधार उपयोगिता व कला मूल्य ही रहेगा व इसी के अनुसार लाभ, हानि, संग्रह मुक्त पद्घति से विनिमय प्रक्रिया संपन्न होगी। अर्थात् विनिमय प्रक्रिया श्रम मूल्य के आदान प्रदान के रूप में सम्पन्न होगी।

‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ सुरक्षा कार्य को ग्राम वासियों के तन, मन, धन रूपी अर्थ के सदुपयोग के आधार पर क्रियान्वयन करेगा। जैसे :-

  1. ग्राम में सुरक्षा.
  2. उत्पादन एवं विनिमय सुरक्षा.
  3. परिवार सुरक्षा.
  4. मानवीय शिक्षा-संस्कार सुरक्षा.
  5. स्वास्थ्य संयम सुरक्षा.
  6. नैसर्गिक सुरक्षा.
  7. संगीत, साहित्य, कला की सुरक्षा.

‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ ग्राम की सभी प्रकार की सुरक्षाओं के प्रति जागरूक रहेगी।

ग्राम सुरक्षा :-

ग्राम सीमा में निहित भूमि का क्षेत्रफल और उस भू-भाग में निहित वन, खनिज, कृषि योग्य भूमि, बंजर भूमि, जल, जल स्रोत, जल संरक्षण, भूमि संरक्षण, सामान्य सुविधा आदि कार्य को सदुपयोग के आधार पर सुरक्षित करना ग्राम सुरक्षा का तात्पर्य है।

ग्राम से संबंधित वन क्षेत्र और ग्राम की (सरकारी) भूमि और स्वामित्व की भूमि, ग्राम सभा के अधिकार व कार्य क्षेत्र में रहेगी। यदि कोई वन क्षेत्र व भू-खण्ड, किसी गाँव से सम्बद्घ न हो ऐसी स्थिति में उसको किसी न किसी गाँव से सम्बद्घ करने की व्यवस्था रहेगी। ऐसे ग्राम क्षेत्र की सुरक्षा का दायित्व भी ‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ का होगा।

उत्पादन और विनिमय सुरक्षा :-

उत्पादन सुरक्षा :-

  1. गाँव में जितने भी प्रकार का उत्पादन सम्बन्धी मौलिकताएँ प्रमाणित होंगी उन सबकी सुरक्षा का दायित्व न्याय सुरक्षा समिति का होगा। जैसे किसी उत्पादन कार्य में विशेष प्रकार की मौलिकता अथवा मौलिक प्रणाली अथवा मौलिक औजार मौलिक विधि जो परंपरा में नहीं रही है, ऐसी स्थिति में उन सबको सुरक्षित किया जाएर्गा। इन सबसे सम्बन्धित मूल वागमय, (डिजाइन,) चित्रण, नक्शा प्रक्रिया, प्रणाली और विधियों को लिपि बद्घ, सूत्रबद्घ कर सुरक्षित करेगा। आवश्यकता पड़ने पर पुरस्कार की व्यवस्था करेगा।
  2. औषधियों का अनुसंधान, वनस्पतियों की पहिचान, ज्योतिष सम्बन्धी अनुसंधान, हस्तरेखा व सामुद्रिक शास्त्र सम्बन्धी साहित्य का अनुसंधान जो परंपरा में नहीं रहा है, उसको उपयोगिता के अनुसार उसकी सुरक्षा का दायित्व ‘‘सुरक्षा समिति’’ का होगा।
  3. साहित्य, कला, संगीत, शिल्प में परंपरा की श्रेष्ठता का अनुसंधान, जो परंपरा में नहीं थी, ऐसी प्रस्तुति होने की स्थिति में उसका यथावत् संरक्षण करेगा।
  4. खेलकूद व्यायाम आदि में परंपरा से अधिक श्रेष्ठता और अनुसंधानों को संरक्षित करेगा।

उपरोक्त कार्य के लिए ‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ क्रम से ‘‘उत्पादन कार्य सलाहकार समिति’’ स्वास्थ्य संयम समिति’’ ‘‘शिक्षा संस्कार समिति’’ के सहयोग से मूल्यांकन प्रक्रिया सम्पादित करेगा।

 

विनिमय में सुरक्षा :-

  1. श्रम मूल्यों को पहिचानने की दिशा में ‘‘सुरक्षा समिति’’ निरंतर सजग रहेगी। एक श्रम मूल्य का आकलन जो कुछ भी ग्राम स्वराज्य स्थापना दिवस में प्रमाणित रहेगा, उसकी गति के प्रति सतर्क रहेगा। निपुणता, कुशलता, कार्य गति, समय व साधन के कुल संयोग से श्रम का मूल्यांकन होगा। इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के सम्बन्ध में उत्पादन गति में वृद्घि करे, श्रम मूल्य में कमी और विनिमय में उसकी समृद्घि के अर्थ को सार्थक बनाने का कार्य समिति करेगी।
  2. लाभ-हानि के सम्बन्ध में सतर्क रहना। (अनावश्यक लाभ और असहनीय हानि न होने के लिए सतर्क होना) उसके लिए सभी व्यवस्था प्रदान करना।
  3. वस्तु की उत्पादकता के आधार पर मूल्यांकन करने में सतर्क रहना व कार्यरूप देना।
  4. सभी विनिमय की संभावना को बनाए रखने में सतर्क रहना व प्रोत्साहित करना।
    1. परिवार सुरक्षा :-
    2. प्रत्येक परिवार की महिमा और गरिमा को ग्राम से बाह्य वातावरण से दूषित होने से बचाना। प्रचार तंत्र द्वारा भ्रमित करने वाली सभी पक्षों से सम्पूर्ण परिवार को सतर्क करते हुए संरक्षित करना।
    3. साहित्य और कला को परिवार राज्य और ग्राम स्वराज्य के अर्थ में प्रदर्शन कार्य के लिए प्रोत्साहन पूर्वक प्रवृत्त करना।
    4. परिवार गत अंतर्विरोध की संभावनाओं को दूर करने के रूप में परिवारों को सुरक्षा प्रदान करना।
    5. किसी एक परिवार की श्रेष्ठता को सभी परिवारों में, सुलभ करने के रूप में परिवार को सुरक्षा प्रदान करना।
    6. किसी परिवार के साथ आकस्मिक दुर्घटना, प्राकृतिक प्रकोप से, असाध्य रोग से क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में, उनसे सान्त्वना व सहायता प्रदान करने के रूप में परिवार की सुरक्षा।

शिक्षा संस्कार सुरक्षा :-

  1. न्याय सुरक्षा समिति यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक ग्रामवासी को मानवीय शिक्षा (व्यवहार शिक्षा व व्यवसाय शिक्षा) ठीक से मिल रही है या नहीं। जो स्कूल छोड़ दिए हैं, स्कूल में नहीं आते हैं, उनके लिए उनके परिवार वालों से मिल जुलकर, शिक्षा संस्कार को सुलभ कराएगी।
  2.             मानवीय शिक्षा में कहीं से भी व्यतिरेक उत्पन्न होता है तो उसको दूर करने की व्यवस्था करेगी।
  3.             शिक्षकों का मूल्यांकन करेगी ठीक से शिक्षा प्रदान कर रहे हैं या नहीं ? समय-समय पर आकर मार्ग दर्शन देगी।

स्वास्थ्य संयम सुरक्षा :-

  1. ग्राम वासियों की बुरी आदतें, जैसे सिगरेट, बीड़ी, गाँजा, तम्बाकू जर्दा, शराब, अफीम, चरस, जुवा आदि समाज विरोधी बुरे प्रभावों के निराकरण के प्रति उन्हें जागृत कर सुधारना और उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
  2. पशु धन की सुरक्षा करना।
  3. जान माल की हानि न हो ऐसी व्यवस्था करना।
  4. वातावरण में यदि कोई प्रदूषण फैला रहा हो जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, उसको रोकना।

नैसर्गिक सुरक्षा :- 

  1. सुरक्षा समिति नैसर्गिक सुरक्षा के लिए निम्न नियमों को ध्यान में रखते हुए कार्य करेगी :-
    1. गाँव की प्राकृतिक सम्पदा का (खनिज, वनस्पति) उसके अनुपात के रूप में उपयोग करेगी।
    2. प्राकृतिक सम्पदा के उत्पादन में, किसी के भी द्वारा विध्न न डालने देना।
    3. प्राकृतिक सम्पदा के उत्पादन में सहायक होना, यह सुनिश्चित करना।

2 मूल्यांकन, प्रोत्साहन, निष्ठावान प्रक्रिया :-

ग्राम सभा द्वारा विभिन्न समितियों के कार्य का मूल्यांकन निम्न मार्गदर्शक सिद्घांतों द्वारा किया जायेगा :-

‘‘उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति’’ का मूल्यांकन निम्न आधारों पर किया जायेगा :-

  1. कृषि, पशुपालन, वनोपज, हस्त शिल्प, ग्राम-शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग के कुल उत्पादन का मूल्यांकन।
  2. उत्पादन में कार्य गति का मूल्यांकन।
  3. उत्पादन में गुणवत्ता व उत्पादकता का मूल्यांकन।
  4. उत्पादन कार्य में कुशलता व निपुणता का मूल्यांकन।
  5. उत्पादन कार्य के लिए आवश्यकीय क_े माल/वस्तुओं की ोतों सहज सुलभता का मूल्यांकन।
  6. प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए (प्रदूषण विहीन प्रणाली से) उत्पादन और उत्पादन कार्य में तकनीकी परिवद्र्घन का मूल्यांकन।
  7. मानव परंपरा में आवश्यकीय व उपयोगी सामान्य आकाँक्षा (आहार, आवास, अलंकार) व महत्वकाँक्षा (दूर गमन, दूर दर्शन, दूर श्रवण) संबंधी वस्तुओं में उत्पादन कार्य का मूल्यांकन।

विनिमय-कोष सलाहकार समिति का मूल्यांकन :-

‘‘विनिमय-कोष सलाहकार समिति’’ का मूल्यांकन निम्न आधार पर होगा :-

  1. विनिमय सहजता व सुलभता का मूल्यांकन।
  2. विनिमय में लाभ हानि मुक्त प्रणाली का मूल्यांकन।
  3. विनिमय प्रणाली में स्व’छता का मूल्यांकन।
  4. विनिमय क्रियाकलाप में, परिमाण, परिमापन, का मूल्यांकन।
  5. विनिमय कोष द्वारा उत्पादन और सहायता का मूल्यांकन।
    1. विनिमय श्रम में गुणवत्ता का मूल्यांकन।
    2. स्थानीय रूप से खरीदने वाली वस्तुओं क्रय-मूल्य, उसके विक्रय मूल्य के आधार पर और ग्राम वासियों के लिए बाह्य बाजारों से क्रय किया गया वस्तुओं का मूल्यांकन (क्रय मूल्य के आधार पर)
    3. साधन प्रबंधो का मूल्यांकन।

शिक्षा-संस्कार समिति के कार्यों का मूल्यांकन :-

‘‘ग्राम सभा’’ ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति व परिवार में ‘‘शिक्षा-संस्कार समिति’’ के कार्यों का मूल्यांकन निम्न आधारों पर करेगी :-

  1. संबंधों और मूल्यों की पहचान और निर्वाह, मानवीयता पूर्ण व्यवहार का मूल्यांकन।
  2. स्वयं के प्रति विश्वास व श्रेष्ठता के प्रति सम्मान क्रिया का मूल्यांकन।
  3. मानवीय आचरण (स्व धन, स्वनारी/स्वपुरूष, दया पूर्ण कार्य) का मूल्यांकन।
  4. ग्राम जीवन व परिवार व्यवस्था में विश्वास व निष्ठापूर्ण आचरण का मूल्यांकन।
  5. ‘.          ग्राम व्यवस्था व ग्राम जीवन में भागीदारी का मूल्यांकन।
    1. प्रत्येक व्यक्ति व परिवार से किया गया तन, मन व धन रूपी अर्थ की सदुपयोगिता का एवं सुरक्षा का मूल्यांकन।
    2. मानव स्वयं व्यवस्था के रूप में संप्रषित, अभिव्यक्त, प्रकाशित होने व समग्र व्यवस्था में भागीदार होने व उसकी संभावना का मूल्यांकन।
    3. किसी व्यक्ति में बुरी आदत हो तो उसके, उससे (बुरी आदत से) मुक्त होने के आधार पर मूल्यांकन।

‘‘न्याय-सुरक्षा समिति’’ का मूल्यांकन :-

‘‘ न्याय-सुरक्षा समिति’’ का मूल्यांकन निम्न आधारों पर होगा :-

  1. आचरण में न्याय सुलभता का मूल्यांकन।
  2. व्यवहार में न्याय सुलभता का मूल्यांकन।
  3. उत्पादन में न्याय सुलभता का मूल्यांकन।
  4. विनिमय में न्याय सुलभता का मूल्यांकन।

क.                 तन, मन, धन, रूपी अर्थ की सुरक्षा का मूल्यांकन।

  1. ग्राम व प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा का मूल्यांकन।
  2. उत्पादन एवं विनिमय सुरक्षा का मूल्यांकन।
  3. परिवार सुरक्षा का मूल्यांकन।
  4. शिक्षा संस्कार सुरक्षा का मूल्यांकन।
  5. स्वास्थ्य संयम सुरक्षा का मूल्यांकन।
  6. नैसर्गिक सुरक्षा का मूल्यांकन।

क.                 स्वास्थ्य-संयम सुरक्षा समिति के कायोँ का मूल्यांकन :-

  1. व्यक्तियों में स्वास्थ्य के प्रति जागृति का मूल्यांकन शारिरिक व मानसिक संतुलन के आधार पर।
  2. व्यक्ति, घर, ग्राम, गली, मोहल्लों, को स्व’छ बनाए रखने का मूल्यांकन।
  3. सीमित व संतुलित परिवार के आधार पर मूल्यांकन।
  4. रोग निरोधी टीकों के प्रति जागरूकता के आधार पर मूल्यांकन।

क.                 योगासन, व्यायाम, खेल के प्रति जागरूकता के आधार पर मूल्यांकन।

  1. रोगी को शीघ्र चिकित्सा उपलब्ध कराने का मूल्यांकन।
  2. घरेलू चिकित्सा के प्रति जागरूकता का मूल्यांकन।

स्थानीय जड़ी-बूटियों के संरक्षण, संवर्धन व उनके प्रति जागरूकता का मूल्यांकन।