Aug 202014
 

JEEVAN VIDYA SAMMELAN FORMAT GUIDELINE DOCUMENT (PROPOSED FOR REVIEW)

सम्मेलन सार्थकता एवं दिशा हेतु एक “रूप-रेखा” प्रस्तावित है, जो प्रत्येक सम्मेलन के समय उपयोग किया जा सकता है | यह निम्नानुसार अनुसार है | कृपया इसे पढ़ें एवं अपने सुझाव दें           – divyapath@live.com

जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मेलन –  प्रस्तावित रूप रेखा

(pdf Download – click thisसम्मेलन रूप रेखा डाउनलोड  )

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(क) सम्मलेन उद्देश्य: पूर्णता के अर्थ में मिलन (क्रियापूर्णता) | मानव लक्ष्य के तहत मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था स्थापना

  1. परसपर मार्गदर्शन, ध्यानाकर्षण – (मंच प्रस्तुति एवं गोष्ठी द्वारा पूरा होगा)

1.1.  स्वयं समझने, जीने, जागृत होने की आवश्यकता, महत्त्व: अध्ययन वस्तु एवं प्रक्रिया

1.2.  स्वावलंबन, स्वधन पूर्वक जीने की आवश्यकता, संभावनाएं

1.3.  अखण्ड समाज मानसिकता, स्वीकृति के साथ जीना

 

2. सूचना प्रसारण  (केन्द्रों की प्रस्तुति एवं गोष्ठी  द्वारा पूरा होगा)

2.1.  देश भर के गतिविधियों की जानकारी

2.2.  अध्ययन शिविरों की सूचना, इनके लिए प्रवृत्त होना

2.3.  शिक्षा, न्याय, उत्पादन, विनिमय, व्यवस्था संबंधी विषयों की जानकारी

 

3. मैत्री मिलन, संपर्क, एवं व्यक्तियों से जुडना: (गोष्ठी  एवं अनौपचारिक चर्चा से पूरा होगा)

3.1.  संबोधन करने वाले व्यक्तियों (प्रबोधकों) से

3.2.  अध्ययनशील साथी एवं देश भर के अन्य साथियों से

 

         4योजना – (i) मूल्यांकन  एवं (ii) दिशा निर्धारण (गोष्ठियों द्वारा पूरा होगा)

4.1.  मूल्यांकन: योजना एवं सम्मेलन की सार्थकता, गुणवत्ता वृद्धि

4.2.  दिशा: मानव लक्ष्य प्राप्ती हेतु संक्रमण कड़ियाँ एवं अवधारणा:

4.2.1.  लोक शिक्षा (जीवन विघा योजना – जीवन को समझाने का प्रक्रिया)

4.2.1.1.        जीवन विघा शिविर (स्तर – १, २, ३),  अध्ययन शिविर (एक वर्षीय/पुस्तकों के साथ)

4.2.1.2.        संबोधन कार्य में एक-रूपता, कठिनाईयां एवं समाधान

4.2.2.  शिक्षा संस्कार (शिक्षा का मानवीयकरण, चेतना विकास मूल्य शिक्षा)

4.2.2.1.        स्कूलीय शिक्षा का स्वरूप, पाठ्यक्रम, पद्धति, प्रणाली (१ से १२ तक)

4.2.2.2.        उच्च शिक्षा में मूल्य शिक्षा प्रयोग

 

4.2.3.  परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था

4.2.3.1.        प्रयास एवं प्रयोग, संक्रमण कड़ियाँ

4.2.3.2.        शासन एवं देश भर में अन्य संघटनों के साथ पूरकता पहचान, भागीदारी सीमा निर्धारण: विकल्प: “शक्ति केंद्रित शासन” के स्थान पर “समाधान केंद्रित व्यवस्था”

(ख) सम्मलेन विषय-वस्तु

1.  मंच प्रस्तुति (प्रस्तावित) : मानव लक्ष्य को स्वयं एवं सभी के लिए सुनिश्चित करना| निम्नलिखित से सम्बंधित किसी भी १ अथवा २ विषयों पर मंच से प्रस्तुति एवं चर्चा:

 1.1)   समाधान

  • पृष्ठभूमी: “विकल्प” की आवश्यकता, विकल्प का स्वरुप – मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद
  • अध्ययन की आवश्यकता – सार्वभौम मानव लक्ष्य एवं जीवन जाग्रति
  • अध्ययन वस्तु – सहअस्तित्व, जीवन, मानवीय आचरण, अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था
  • अध्ययन प्रक्रिया – अध्ययन क्या? अध्ययन कैसे? – चेतना विकास, मानव चेतना
  • अध्ययन के साथ ‘जीने का अभ्यास’: महत्त्व
  • अध्ययन शील व्यक्ति: स्वयं की गति, समाज में सम्भावना
  • “अध्ययन शिविर” – सूचना एवं स्वरुप

 1.2)   समृद्धि

  • समृद्धी: अवधारणा
  • समृद्धि: साकार करने की सम्भावना, सफलता, बाधाएं एवं समाधान

 

 1.3)   अभय (अखंड समाज)

  • समुदाय समाज नहीं है
  • समुदाय चेतना के विकल्प में अखंड समाज: अवधारणा (न्याय पूर्ण व्यवहार)
  • न्याय: प्रचलन एवं प्रस्तावित में अंतर; समस्या-समाधान
  • सार्वभौम सामाजिक नियम

 1.4)   सह अस्तित्व (सार्वभौम व्यवस्था)

  • शासन व्यवस्था नहीं है, मनमानी स्वतंत्रता नहीं है
  • सार्वभौम व्यवस्था: धर्मपूर्ण व्यवस्था – १० सोपनीय व्यवस्था
  • प्रकृति में पूरकता एवं व्यवस्था: प्राकृतिक असंतुलन – समस्या एवं समाधान

1.5)   मानवीय परंपरा (स्वराज्य)

  • विकल्प: संस्कृति, सभ्यता, विधी, व्यवस्था
  • विकल्प: शिक्षा, आचरण, संविधान, व्यवस्था विधाओं

 

नोट्स:

1)   प्रत्येक मंच चर्चा के लिए १ से २ मूल प्रस्तुतियाँ होनी चाहिए जो उस विषय का परिचय एवं सारांश दें  

2)   इनके अलावा ३-४ व्यक्तियों की प्रस्तुतियाँ, जिसमे वे अपना व्यक्तिगत यात्रा भी बतायें

3)   मंच चर्चा में विचार-विमर्श भी होना आवश्यक है, प्रश्न उठाये जाएँ, समाधान प्रस्तुत कीये जायें

4)   चर्चा के अध्यक्ष प्रस्तुत कर्ताओं के साथ सम्मेलन से पूर्व ही तय्यारी आवश्य करें| इसकी जिम्मेदारी मंच संचालक के पास है

2)  केन्द्रों, समूहों की प्रस्तुतियाँ:  मानव लक्ष्य सम्बंधित गतिविधी, सूचना प्रसार: सार्वभौम मानव लक्ष्य के अर्थ में गतिविधियां:

  1. शिक्षा-संस्कार  [समाधान]

i.    लोक शिक्षा योजना (अनुवाद, जीवन विद्या शिविर, अध्ययन शिविर)

ii.    शिक्षा संस्कार (स्कूलीय शिक्षा)

iii.    चेतना विकास मूल्य शिक्षा – शिक्षा का मानवीयकरण, उच्च शिक्षा

  1. स्वास्थ्य – संयम [समृद्धी]
  2. उत्पादन – कार्य [समृद्धी, सहअस्तित्व]
  3. विनिमय-कोष [समृधी, अभय]
  4. न्याय – सुरक्षा [अभय]

 

नोट्स:

  • प्रस्तुतियाँ:

a)   केंद्र – मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन हेतु स्थाई स्थान

b)   समूह – अध्ययनशील व्यक्तियों का गठन

c)   व्यक्ति – व्यक्तिगत प्रयास, प्रस्तुति  

  • ५ आयामों में मात्र पिछले १ वर्ष में उपरोक्त में प्रयास का वर्णन – इसके लिए फॉर्मेट संलग्न है

 

3) गोष्ठियां (समूह चर्चा) – प्रस्तावित विषय

  • विभिन्न विषयों पर सूचना, प्रश्न-उत्तर, चर्चा, मैत्री-मिलन, जानकार व्यक्तियों से संपर्क, आगे के लिए भावी योजना बनाना
  • प्रत्येक दिवस के मंच चर्चा के विषय पर सायंकाल में एक गोष्ठी रहेगा: इसमें और विस्तार, प्रश्न-उत्तर रह सकते हैं
  • प्रस्तावित गोष्ठियों की सूची:
  1. अध्ययन संबंधी सूचना : मध्यस्थ दर्शन वांग्मय सूचना
  2. अध्ययन संबंधी सूचना: अभ्यास-अध्ययन प्रक्रिया (अध्ययन कैसे? क्या?)
  3. अध्ययन संबंधी प्रश्न-उत्तर: अध्ययन में कठिनाईयां एवं समाधान
  4. जीवन विघा अध्ययन बिंदु शिविर (स्तर २, ३) – सूचना, चर्चा
  5. १ वर्षीय अध्ययन शिविर – सूचना, गुणवत्ता वृद्धि
  6. सह-अध्ययन बैठक – अध्ययनशील व्यक्ति विचारविमर्श, पूरकता
  7. नए संबोधन करता/इच्छुक मार्गदर्शन: शिविर रूप-रेखा, कठिनाई-समाधान, किसी अनुभवी संबोधन करता के साथ जुडना
  8. स्कूलीय शिक्षा: कक्षा १ से १० पाठ्यक्रम, विषय वस्तु, अभिभावक विघालय
  9. उच्च शिक्षा में मूल्य शिक्षा का प्रयोग: परिणाम, चर्चा
  10. ५ आयामों में से किसी भी एक या दो में  प्रचलन में एवं प्रस्तावित में अंतर पर चर्चा: शिक्षा, स्वास्थ्य, उत्पादन, विनिमत, न्याय
  11. देश की परिस्थिति एवं व्यवस्था के अपेक्षा में अन्य व्यक्तियों, संघटनों के साथ पूरकता
  12. जीवन विघा योजना – गुणवत्ता वृद्धि (लोक शिक्षा, शिक्षा संस्कार, परिवार व्यवस्था | सम्मलेन)
  13. वैकल्पिक ऊर्जा
  14. तुलनात्मक अध्ययन: विज्ञान, समाजशास्त्र, संविधान, अन्य दर्शनों के साथ, इत्यादी
  15. अनुवाद प्रयास – सूचना

नोट्स:

  • गोष्ठियों का वर्णन, निष्कर्ष अगले दिन प्रातः सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाए
  • गोष्ठियों के पश्च्यात coordination के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की नियुक्ती

 

*** उपरोक्त के माध्यम से प्रचार एवं  प्रदर्शन ***

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२०१३ सम्मलेन रूप-रेखा समिति: (२०१२ अछोटी सम्मलेन में तय किया गया)

  • प्रत्येक केन्द्र, एवं आवश्यकता पढ़ने पर समूह से एक सदस्य होंगे | इसके अलावा पूर्व सम्मेलन स्थली से १ व्यक्ति + जहां सम्मेलन होना हैं, वहाँ से १ व्यक्ति होंगे | सदस्यों का निर्णय केंद्र अथवा समूह स्वयं करें – प्रत्येक वर्ष २ सदस्यों का rotation सुझावित है |
  • २०१३ सम्मेलन समिति: (कुल १० सदस्य)
    • रायपुर: योगेश शास्त्री, संकेत ठाकुर, सुवर्णा शास्त्री
    • बेमेतरा: गणेश वर्मा
    • बिजनौर: अरुण कुमार
    • कानपुर: अभिषेक कुमार, कुमार संभव
    • अमरकंटक: गौरी श्रीहरी, श्रीराम नरसिम्हन
    • इंदौर: अजय दायमा
    • राजस्थान (समूह): सुरेन्द्र पाठक
    • दिल्ली (समूह) – मृदु, अंकित
    • देहरादून (समूह) – अनुराग, अशोक
    • गुजरात (समूह) – सुरेन्द्र पाल
    • महाराष्ट्र (समूह) – शरद सिंघल, कोलते, आशुतोष

 

जुलाई माह से सम्मेलन तैयारीप्रारंभ किया गया:

  • २ बैठक हुए:  अमरकंटक में
  • ईमेल द्वारा विस्तृत चर्चा रही
  • “कोंफेरंस काल” के माध्यम से २ बैठक (४ घंटे )

 

सम्मलेन सलाहकार समिति:

  • ४  सदस्य: -> रणसिंह आर्य, गणेश बागडिया, साधन भट्टाचार्य, सोमदेव त्यागी                                           [इन्होने सम्मेलन समिति से प्रस्तावित कार्यक्रम को जांचा एवं सुझाव दिया]

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 ** सम्मेलन के अलावा अन्य गोष्ठियां **

सम्मेलन के अलावा निम्नलिखित विषयों पर क्षेत्रीय एवं राष्ट्रिय स्तर पर “अध्ययन गोष्ठी” एवं “अवधारणा गोष्ठी” होना आवश्यक है |     सभी साथियों में निम्नलिखित विषयों पर स्पष्टता आवश्यक है |

 

1) विचार विमर्श, स्पष्टता

  •  स्वयं समझने, अभ्यास-अध्ययन-अनुभव की विधी (मध्यस्थ दर्शन वांग्मय > श्रवण > मनन > अध्ययन, इसमें समझाने वाले व्यक्ति (गुरु) का महत्त्व) | अध्ययन का वस्तु |
  • अभ्यास क्रम में कार्यक्रम/अभियान भी “स्वयं के अभ्यास” के अर्थ में पहचान, स्वयं के जागृति के ओर सीढी है | “अध्ययन” ही लक्ष्य है |
  • अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था (पाँचों आयाम) का (a) स्वरूप/चित्रण (b) संक्रमण कड़ियाँ

2) साथियों में परस्पर मित्र संबंध की पहचान, एक दुसरे के कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता का सम्मान, परस्पर मैत्री

3) उपरोक्त के आधार पर योजना, कार्यक्रम (‘दर्शन’ के साथ ‘सार्वभौमिक’ पक्ष पर ध्यान):

 

3.1) शिक्षा में क्या करना है:

लोक शिक्षा योजना: परिचय शिविर, अध्ययन शिविर (अनेक स्तर):  शिक्षा का मानवीयकरण: चेतना विकास मूल्य शिक्षा: (विश्वविघालय, उच्च शिक्षा में)  स्कूलीय शिक्षा 
  • उद्देश्य
  • स्वरुप
  • सावधानियां-समाधान

 

  • उद्देश्य
  • विधी
  • संक्रमण कड़ियाँ (प्रकोष्ट, कोर्स, इत्यादी)

 

  • विधी (सरकारी मान्यता, MLL, शुद्ध-बुद्ध), पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक रचना
  • प्रचिलित विषयों में परिवर्तन, पाठ्यपुस्तक रचना

 

 

3.2) व्यवस्था में क्या करना है

a)    वार्षिक सम्मेलनों की भूमिका

b)    व्यवस्था के स्थापना के क्रम में शासन के साथ पूरकता: उत्पादन, विनिमय, न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य | [जैसे शासन के नीति पक्ष में गुणात्मक सुधार –  विभिन्न अधिकारियों के साथ शिविरों का उद्देश्य, कड़ियाँ)]

c)    व्यवस्था के स्थापना के क्रम में सामाजिक संघटनों के साथ पूरकता: उत्पादन, विनिमय, न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य

 August 20, 2014  Uncategorized
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