समझदारी ही सुख
समझदारी से ही कल्याण होगा | समझदारी से ही सुखी समृद्ध होते हैं | समझदारी में वर्तमान में व्यवस्था के रूप में जीते हैं | तभी सह-अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं | सुख के चार चरण है, समाधान, समृद्दि, अभय, सह-अस्तित्व | यानि हर मानव में समाधान, परिवार में समृद्धि, समाज में अभय और अस्तित्व में सह-अस्तित्व | यह चारों चीजें आती है तो हम सुखी हो जाते हैं | जब तक यह चारों चीजें नहीं आती हैं तब तक हम प्रयत्न करते रहते है | यह सदा-सदा से हो ही रहा है |
इस प्रयत्न के क्रम में ही हम तमाम जप-तप, पूजा-पाठ, योग-यज्ञ कर डाले है | बहुत सारी चीजें, धन-संपदा भी इकट्टा किये है, किन्तु इससे सब लोग तो सुखी नहीं हुए | एक ही परिवार के सभी लोग सुखी नहीं हो पाते है | ऐसा ही समाज में देखने में आता है | सभी के सुखी होने के लिए सभी का समझदार होना आवश्यक है | ऐसा होता नहीं कि एक व्यक्ति ज्ञानी हो जाये और सब को तार दे | हर व्यक्ति को सुखी होना है तो समझदार होना ही होगा | अवसर यह है कि समझदारी सभी को पहुंचाया जा सकता है | समझदारी के लिए पहला चरण है अस्तित्व को समझना |
अस्तित्व चार अवस्था में है | पहला पदार्थावस्था, जिसमें मिटटी, पाषाण, मणि, धातु आदि है | यह सब अपने आचरण में प्रमाणित है ही | दूसरी प्राणावस्था, जिसमे सभी वनस्पतियां, औषधियां है | यह सब भी अपने आचरणों में स्वयं प्रमाणित है | तीसरी जीवावस्था, जिसमें मनुष्य को छोडकर सभी जीव-पक्षी आते हैं | यह सभी अपने त्व सहित व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित है ही | चौथी ज्ञानावस्था है, जिसमें केवल मनुष्य है, जिसको व्यवस्था में होने में अभी प्रतीक्षा है | अब सोचिये सबसे विकसित अवस्था सबसे पीछे है | क्या मतलब है इसका? ऐसा जीने-रहने पर दुःख नहीं होगा तो क्या होगा?
इसीलिए बात की जा रही है समझदारी कि | तभी व्यवस्था में जिया जा सकता है और तभी सुखी रहा जा सकता है | हमारा चरित्र भी विकसित चेतना के रूप में होने कि आवश्यकता है | आचरण के रूप में हर वस्तु अपनी व्यवस्था को प्रमाणित करतें हैं | मानव भी अपने आचरण में व्यवस्था को प्रमाणित करेगा | इसकी संभावना भी है, प्रयास भी है | इसी के बाद मानव का सुखपूर्वक व्यवस्था में जीना और उसकी परंपरा बनना निश्चित होगा |
– ए. नागराज
02 मार्च २०१२