Humanism – Behavior centric (व्यवहारात्मक जनवाद)

 

Behaviour centric Humanism: vyavhaaratmak janvaad  (व्यवहारात्मक जनवाद) |

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  • that covers mutual discussion between peoples covering  behavior & justice in a propositional manner with view of evidencing the same.  Discusses the issues in humanism to date and how these get resolved. This is in the form of ‘`behavior-centric humanism’.  Maps to  darsana of human behavior  which provide its basis.
  • Contents:
    • Why Behavior-centric Humanism? Nature of Humane Behavior. Discussion of Humanist Thought. True-Nature of Human on the basis of disposition.
    • Behavior with Human Tradition. Need for peoples discussion.


व्यवहारात्मक जनवाद –  प्राक्कथन

* स्त्रोत = संस १

 [इसके फॉण्ट में व्यतिरेक हैं, सुधारना हैं]

 

व्यवहारात्मक जनवाद नाम से यह प्रबंध मानव के कर कमलो में अर्पित करते हुए परम प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ। जनवाद का तात्पर्य मानव मानव से बातचीत करता ही है, संवाद करता ही है, वाद-विवाद करता ही है यह सबको पता है। यह सब यथावत रहेगा ही, तमाम प्रकार से होने वाली बातचीत का लक्ष्य दिशा को स्वीकृति पूर्वक, स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करने के क्रम में मानव का उपकार होने की आशा समायी है। उपकार का तात्पर्य मानव लक्ष्य के अर्थ में, दिशा निश्चित होने से है। इसे लोकव्यापीकरण करने के उद्देश्य से यह पुस्तिका प्रस्तुत है।

 

हम मानव सदा से ही सुखी होना चाहते हैं। यह सबको कैसे उपलब्ध हो सकता है ? सोचने, समझने, स्वीकार करने अथवा मान लेने के आधार पर दो प्रकार के प्रयोग हो चुके हैं। पहला भक्ति विरक्ति से सुखी होने का प्रयास और प्रयोग लाखों आदमियों से सम्पन्न हुआ। दूसरी विधि सुविधा-संग्रह से सुखी होने के लिए अथक प्रयास करो$डों मानव अथवा सर्वाधिक मानवों ने किया। इन दोनों विधियों से सर्वमानव का सुखी होना प्रमाणित नहींं हुआ। इसी रिक्ततावश इसकी भरपाई के लिए किसी विधि की आवश्यकता बन चुकी थी। इसी घटनावश उत्पन्न समाधान के लिए सह-अस्तित्ववादी नजरिया से ज्ञान, कर्माभ्यास और अनुभवमूलक विधि से अनुभवगामी पद्घति सहित प्रस्तुत हुए। मध्यस्थ दर्शन सह-अस्तित्ववाद के अंगभूत यह व्यवहारात्मक जनवाद प्रस्तुत है।

 

जनवाद के मूल में आशा यही है, मानव अपने अधिकारों,  दायित्वों, कर्तव्योंं को समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व रूपी लक्ष्य के लिए समझे, सोचे, निश्चय करे और कार्य व्यवहार में प्रमाणित करे। इसी शुभ कामना से इस प्रबंधन को प्रस्तुत किया है।

हर मानव सुखी होना चाहता है सुखी होने के लिए समाधान आवश्यक है। समाधान के लिए समझदारी आवश्यक है। समझदारी का मूल स्वरूप सहअस्तित्व दर्शनज्ञान, जीवन ज्ञान ही होना पाया जाता है। इसे लोकव्यापीकरण करने का आशा इस प्रस्तुति में समाया हुआ है।

 

हर मानव अपनी पहचान प्रस्तुत करना चाहता ही है। हर मानव की पहचान समाधान समृद्घि अभय सहअस्तित्व रूप में ही पहचानना बनता है और पहचान कराना भी बनता है। इसी आधार पर पूरे मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद को समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व रूपी मानव लक्ष्य को सार्थक बनाने के अर्थ में प्रस्तुत किया गया है। मेरा विश्वास है हर मानव ऐसे ही अध्ययन का स्वागत करेगा।

यह पुस्तिका सर्वमानव शुभ के अर्थ में सम्प्रेषित है। सर्वशुभ के अर्थ में सहअस्तित्व स्वयं निरन्तर प्रभावशील है। सहअस्तित्व के वैभव में ही सम्पूर्ण मानव का शुभ समाया हुआ है। इस तथ्य का अध्ययन कराना उद्देश्य रहा है। हम स्वयं अध्ययन किये हैं। अतएव आपके सौभाग्यशाली वर्तमान के रूप में अनुभव करने के लिए सहायक होगा, ऐसा हमारा निश्चय है।

यह प्रबंध मानव को समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी पूर्वक मानव लक्ष्य, जीवन लक्ष्य को भागीदारी रूप में प्रमाणित करने के लिए प्रेरक है। यह सार्थक हो, सर्वसुलभ हो, मानव कुल अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के रूप में सदा-सदा प्रमाणित होता रहे। यही कामना है।

            ए. नागराज

            प्रणेता-मध्यस्थदर्शन

            (सह-अस्तित्ववाद)