Constitution-Human (मानवीय संविधान)
Humane conduct based Human Constitution | मानवीय आचार संहिता रूपी मानवीय संविधान – सूत्र व्याख्या
Definition of Constitution:Aphorisms and explanation of Law frameworks for the purpose of evidence of perfection in tradition.
#The Constitution provides the overall basis& law-frameworks for Human Society and its existential basis on Actuality, Reality & Truth.
- Contents:
- Aphorisms and detail of Coexistence, Constitution, Law frameworks, Norms, Justice, Conduct; Awakened Human, Fundamental Rights, Orderliness (Human Systems).
- Village-Settlement orderliness, Examination sutras for every individual, Natural Conduct sutras for Humane Conduct.
*स्त्रोत = मानव आचार संहिता रूपी मानवीय संविधान – सूत्र व्याख्या ; संस १ , अध्याय -१
मानवीय संविधान परिचय
मान्यता
(क) सत्ता में संपृक्त प्रकृति, अस्तित्व सर्वस्व, नित्य वर्तमान है ।
(ख) अस्तित्व ही सह-अस्तित्व के रूप में वर्तमान है । इसका मूल रूप सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति ही है । यह न तो घटता है और न बढ़ता है ।
(ग) सह-अस्तित्व में प्रत्येक एक अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदारी निर्वाह करते हुए पूरकता-उपयोगिता विधि से होना देखने को मिलता है। यह भ्रमित मानव के अतिरिक्त संपूर्ण प्रकृति यथा जीव, वनस्पति तथा पदार्थ रूपों में स्पष्ट है । प्रत्येक मानव भी व्यवस्था में होना-रहना चाहता है एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी प्रमाणित करने के लिए उत्सुक है। यह जागृत परंपरा में ही सफल होता है ना कि जीव चेतना में ।
(घ) प्रत्येक मानव जीवन और शरीर के संयुक्त साकार रूप में वैभव व परंपरा में है ही ।
(ङ) जानना-मानना ही समझदारी, पहचानना-निर्वाह करना ही ईमानदारी है ईमानदारी पूर्वक जिम्मेदारी भागीदारी सम्पन्न होता है। यह जीवन सहज वैभव है। जीने की कला के रूप में अखंड समाज और सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी निर्वाह करना ही मानव चेतना मूलक विधि है, आचरण ह ै।
(च) मानव जाति एक-कर्म (उत्पादन रूप में) अनेक ।
(छ) मानव धर्म (सर्वतोमुखी समाधान सार्वभौम व्यवस्था व सुख रूप में) एक व्यक्तिवाद समुदायवाद के रूप में अनेक ।
(ज) ईश्वर सत्ता सहज रूप में (व्यापक, पारगामी, पारदर्शी रूप में) एक देवी, देवता अनेक ।
(झ) अखण्ड राष्ट्र रूप में एक राज्य अनेक ।
मानवीय संविधान
परिचय
मानवीयता सहज साक्ष्य रूप में पूर्णता, स्वराज्य, स्वतंत्रता और उसकी निरंतरता को जानने, मानने, पहचानने व निर्वाह करने, कराने और करने योग्य मूल्य, चरित्र, नैतिकता रूपी विधान ।
_. मानवीयता सहज जागृति व जागृति पूर्णता ही अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था पूर्वक परंपरा के रूप में अर्थात् पी$ढी से पी$ढी के रूप में निरंतरता को प्रमाणित करता है । यह करना, कराना, करने के लिए सहमत होना मानव में, से, के लिए मौलिक विधान है ।
_. मानव परिभाषा के रूप में ‘‘मनाकार को सामान्य आकाँक्षा व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं और उपकरणों के रूप में, तन मन सहित, श्रम नियोजन पूर्वक साकार करने वाला, मन: स्वस्थता अर्थात् सुख, शांति, संतोष, आनंद सहज अपेक्षा सहित आशावादी है ।’’ इसे प्रमाणित करना, कराना, करने के लिए सहमत होना मानव परंपरा में, से, के लिए मौलिक विधान है ।
_. मानव अपनी परिभाषा के अनुरूप बौद्घिक समाधान, भौतिक समृद्घि सहित अभय, सहअस्तित्व सहज स्रोत व प्रमाण है । यह मौलिक विधान है।
_. मानवीयतापूर्ण आचरण जो स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष, दया पूर्ण कार्य व्यवहार, संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्याँकन स्वीकृति, उभयतृप्ति, तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग सुरक्षा के रूप में ही मानवीयता सहज व्याख्या है । यह मानव परंपरा में मौलिक विधान है ।
‘. ‘‘मानवीयता पूर्ण आचरण सहजता, मानव में स्वभाव गति है।’’ मानवीयतापूर्ण आचरण मूल्य, चरित्र, नैतिकता का अविभा’य अभिव्यक्ति, संप्रेषणा व प्रकाशन है। यह मौलिक विधान है।
_. ‘‘जागृति मानव सहज स्वीकृति है।’’ मानव सहज कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का तृप्ति बिंदु स्वानुशासन है । यह परम जागृति के रूप में प्रमाणित होता है। यह मानव परंपरा में मौलिक विधान है।
_. ‘‘सार्वभौम व्यवस्था व अखंड समाज, मानव सहज वैभव है।’’ मानव सहज कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का तृप्ति बिंदु परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होता है। यह मौलिक विधान है।
ऋ. ‘‘मानवीय-लक्ष्य परम जागृति के रूप में सार्वभौम है। मानवीयतापूर्ण अभिव्यक्ति, प्रकाशन सहज संप्रेषणाएँ, संपूर्ण आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्यों में समाधान, समृद्घि, अभय व सह अस्तित्व रूपी वैभव को प्रमाणित करता है । यह मौलिक विधान है।
‘. ‘‘मानव बहु-आयामी अभिव्यक्ति है ।’’ मानव सहज परंपरा में अनुसंधान, अस्तित्व मूलक मानवीयता पूर्ण अध्ययन, शिक्षा व संस्कार, आचरण व व्यवहार, व्यवस्था, संस्कृति-सभ्यता और संविधान ही सहज प्रमाण है । यही मौलिक विधान है ।