Adhyayan/ Study – Roadmap
मध्यस्थ दर्शन अध्ययन चरण: नवीन अध्येताओं के लिए संक्षिप्त चित्रण
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“परिचय ब्लॉक”
चरण #1 परिचय शिविर
युवा एवं प्रौढ़ों के लिए मध्यस्थ दर्शन की यात्रा सात दिवसीय जीवन विद्या परिचय शिविर से प्रारंभ होता है | जीवन विद्या परिचय शिविर से मनुष्य के जीवन के सम्पूर्ण आयाम एवं सारे परिस्थियों के बारे जानकारी मिलती है, व इनसे सम्बंधित रहस्यों का उन्मूलन होता है, साथ में समाधान का रास्ता स्पष्ट होता है |एक से अधिक प्रबोधक का 2-3 परिचय शिविर करना सुझावित है | इसमें 6 माह से 1 varsh का समय लग सकता है |
* परिचय शिविर के सामान्य फल
(*सभी फल, पूर्व संस्कार, अध्ययन-अभ्यास एवं वातावरण आधीन है)
स्पष्टता
- मनुष्य जीवन एवं सच्चाई के प्रति स्पष्टता
- आध्यात्म/इश्वर/देवी देवता सम्बन्धी भ्रम दूर होना
- व्यक्ति, परिवार, समाज, एवं प्रकृति के स्तर संगीत हेतु व्यक्तिगत समाधान की आवश्यकता स्पष्ट होना
- मानवीय शिक्षा, उत्पादन, विनिमय, न्याय के प्रति ध्यान जाना
- जागृत होने, अध्ययन की आवश्यकता स्पष्ट होना
- जिन्दगी की सार्थक दिशा मिले
~गुणात्मक परिवर्तन
- रूप/बल/धन/पद के प्रति भ्रम-भय का क्षय होना
- भौतिकता से ध्यान हटकर व्यवहार, समाज एवं बौध्दिकता के ओरे जाना
- व्यवहार में सतर्कता बढ़ेगा, बड़ें गलतियों से बचना
- निकट संबंधों में ध्यान एवं सुधार: माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री...
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“परिचय ब्लॉक”
चरण #2 "अध्ययन बिन्दु परिचय शिविर"
अध्ययन बिंदु शिविर, श्री ए.नागराज के द्वारा लिखित ‘जीवन विद्या 44 उद्बोधन बिन्दुओं’ का व्याख्या है | इसमें मध्यस्थ दर्शन के मूल तत्वों से अवगत होना होता है – जैसे सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, चैतन्य रूपी जीवन ज्ञान में १- क्रियाएं, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान, विवेक, विज्ञान, अखंड समाज एवं सार्वभौम व्यवस्था | साथ में मध्यस्थ दर्शन का भौतिकवाद एवं आदर्शवाद का ‘विकल्प’ होना स्पष्ट होता है |३-६ माह के अंतराल में एक-दो अध्ययन बिंदु शिविर करना सुझावित है |
*इस कड़ी का सामान्य फल
(*सभी फल, पूर्व संस्कार, अध्ययन-अभ्यास एवं वातावरण आधीन है)
स्पष्टता
- दर्शन के मूल अध्ययन के बिंदु: अस्तित्व दर्शन ज्ञान, चैतन्य जीवन ज्ञान एवं मानवीय आचरण ज्ञान के प्रति अवगत होना
- विवेक एवं विज्ञान
- स्वयं अध्ययन की आवश्यकता बलवती होना
- अस्तित्व तर्क सांगत, समझने योग्य लगने लगता है
~गुणात्मक परिवर्तन
- स्वयं पर ध्यान बढ़ना,
- व्यवहार में ध्यान
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“परिचय ब्लॉक”
चरण #3: अवलोकन शिविर (Optional)
अवलोकन शिविर में मध्यस्थ दर्शन के मुख्य अध्ययन के बिन्दुओं का सारांश रूप के साथ सम्पूर्ण वांग्मय का परिचय है, तथा इन्हें पढने के विधि को लेकर विमर्श होता है | साथ में अध्ययन एवं अभ्यास के विधि पर स्पष्टता आति है | अवलोकन शिविर का उद्देश्य मध्यस्थ दर्शन पुस्तकों को पढने में सुलभता, एवं पढने के अनंतर समेटने में मदद करता है | इसमें ‘चैतन्य जीवन’ को केंद्र में रखते हुए, ‘अस्तित्व’ का अध्ययन करने का मानसिकता स्पष्ट हो जाता है | | प्रथम पठन के पूर्व में ‘अवलोकन Module’ हेतु पठन एवं सुनना लगभग 9 माह से 1 वर्ष लग सकता है | अवलोकन के अनंतर अध्ययन शिविर करने से पुस्तकों को पढने की अच्छी पूर्व तय्यारी हो जाती है |
*इस कड़ी का सामान्य फल
( *सभी फल, पूर्व संस्कार, अध्ययन-अभ्यास एवं वातावरण आधीन है)
स्पष्टता
- दर्शन सम्पूर्ण के मुख्य वस्तुओं पर ध्यान
- मुख्य शब्द/भाषाओँ को छांटना, उनका दर्शन में पहचान.
- परिभाषा विधि का महत्व.
- अध्ययन एवं अभ्यास का सामान्य चित्र: पठन, व्यवहार, परिवार, व्यवसाय-आर्थिक पक्ष एवं समाज में भागीदारी होने में संतुलन
- स्वयं समझने, सुधरने की आवश्यकता
~गुणात्मक परिवर्तन
- स्वयं पर ध्यान बढ़ना,
- व्यवहार में ध्यान
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अध्ययन ब्लॉक
मध्यस्थ दर्शन अध्ययन शिविर विधिवत १२ पुस्तकों का अध्ययन है (4 दर्शन, 3 वाद, 3 शास्त्र, परिभाषा एवं संविधान) | इसमें कोई ज्येष्ठ अध्येता साथ में रहते हैं एवं पूर्ण कालीन अथवा अंश कालीन माध्यम से पूरा किया जा सकता है | इसमें समझने, जीने एवं मानवीय व्यवस्था एवं परंपरा का सम्पूर्ण सूचना सामने आ जाती है, एवं आगे इसे समझने एवं जीने का मन तैयार होता है |अध्ययन शिविर 6 माह से 2 वर्ष, पूर्ण एवं अंश कालीन विधियों में उपलब्ध हैं |
- भाषा पर पकड़ बढ़ता है विद्वता
- चित्रित करने – सोचने का दायरा विशाल होता है
- तर्क सटीक होने लगता है
- मनुष्य जीवन को समझना सुलभ हो गया
- समस्याओं के मूल कारण ध्यान में आवें, उनका समाधान का पहचान, , परिस्थितियों के लिए अपना जिम्मेदारी स्वीकार होना
- स्वयं पर ध्यान, व्यवहार पर ध्यान ~ मानवीय आचरण के भास् पूर्वक जीना
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अध्ययन ब्लॉक
अध्ययन-अभ्यास गोष्ठी – पुतकों को कई बार पुन:-पठन के साथ साथ अपने समझ / मान्यता / निष्कर्षों को जांचने, अभ्यास के विधियों को समझने एवं परस्पर मित्री के लिए अवसर है | यह छोटे समूहों में होता है | इस चरण में सारा भाषा सिमटकर सूत्र रूप में हमारे में हो जाता है | इस क्रम में पुस्तकों को 2 से 8 बार पढना हो जाता है एवं 4 से 8 वर्ष लग सकते हैं |
- भाषा पर पकड़ बढ़ता है - विद्वता
- चित्रित करने – सोचने का दायरा विशाल होता है
- तर्क सटीक होने लगता है
- मनुष्य जीवन को समझना सुलभ हो गया
- समस्याओं के मूल कारण ध्यान में आवें, उनका समाधान का पहचान, , परिस्थितियों के लिए अपना जिम्मेदारी स्वीकार होना
- स्वयं पर ध्यान, व्यवहार पर ध्यान ~ मानवीय आचरण के भास् पूर्वक जीना
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अभ्यास ब्लॉक
मनन गोष्ठी, सम्पूर्ण वांग्मय पर श्रवण अधिकार के पश्चात, अपने ‘समझ’ जैसे स्वयं होने के लिए, ज्ञान सम्मपन्न होने के लिए केन्द्रित होने के लिए है | इसमें व्यवहार, स्व-मूल्यांकन एवं समझ के मुद्दों पर महीन बा हो पाती है | इस भूमि में भाषा कम हो जाता है, अर्थ अधिक हो जाता है | मनन में प्रौढ़ता आने में कई वर्ष लगता है, यह हमारा पूर्व संस्कार एवं स्वयं प्रमाणित होने के तीव्र इच्छा पर निर्भर करता है |
- स्वयं सुधरने का पक्ष गति लेता है – अमानवीय प्रवृत्तियों की क्षीणता ~ मानवीयतापूर्ण आचरण का आभास पूर्वक जीना
- अपने कमियों, गलतियों का पहचान, उसमें सुधार
- दर्शन में अधिकार, विद्वता विकसित हो जाता है
- तर्क शक्तिशाली हो जाता है ~ प्रज्ञाशील
- समाज के लिए सार्थक भागीदारी कर पाते हैं
समझ > अभ्यास क्रम ब्लॉक
साक्षात्कार में हम समझे हुए, मनन किये हुए निरंतर रहें वाले वास्तविकताओं को अस्तित्व में ‘वस्तु’ रूप में पहचान लेते हैं, इसका ज्ञान होता है | साक्षात्कार में भाषा एवं तर्क नहीं रहता, साक्षात्कार होने से वस्तु पर विश्वास एवं वैसे जीना में निष्ठा बन जाता है | साक्षात्कार होने से पुस्तक पीछे छूटना शुरू हो जाता है | मनन-साक्षात्कार-जीना क्रम में अवधारणा रूपी स्थिरता आने में समय लगता है | यह हमारा पूर्व संस्कार एवं स्वयं प्रमाणित होने के तीव्र इच्छा पर निर्भर करता है |
बोध में साक्षात्कार किये वस्तुओं पर दृढ़ता बन जाति है | बोध होने से पुस्तक पीछे छूट जाता है |
अनुभव में ज्ञान एवं आचरण पूर्ण हो जाता |
साक्षात्कार-बोध-अनुभव होने से स्वयं में विश्राम, सुख, शांति, संतोष, आनंद की क्रमश: निरंतरता होता है |
* सामान्य फल
(सामान्य भाषा में, *सभी फल, पूर्व संस्कार, अध्ययन-अभ्यास एवं वातावरण आधीन है)
साक्षात्कार
- मोह-लोभ-काम; मद-मात्सर्य-क्रोध क्षीणता/...मुक्ति
- स्थूल हठ अभिमान से मुक्ति
- मानवीयता (आचरण, चरित्र, न्याय व्यवहार) के प्रतीति पूर्वक जीना
- स्वयं में विश्वास स्थायी होना – अस्तित्व के प्रति विश्वास, जागृति के प्रति विश्वास
- स्वयं चैतन्य जीवन होने पर विश्वास ~ प्रज्ञा
- ~ परिवार मानव
बोध
- अहंकार से मुक्ति,
- आवेश -हठ-अभिमान से मुक्ति
- मानवीयता (चरित्र, आचरण, न्याय एवं समाधान) का बोध पूर्वक जीना :
- प्रखर प्रज्ञा, संचेतना
- ~समाज मानव
अनुभव
- न्याय-धर्म-सत्य रूपी आचरण की पूर्णता (त्रुटी विहीनता)
- तीनों ज्ञान विवेक विज्ञान की पूर्णता
- अमरता ज्ञान, ऋतंभरा प्रज्ञा
- ~विश्व मानव: मानव, देव, दिव्य मानवीयता अनुभवमूलक प्रमाणित करना
इस कड़ी का विस्तृत विवरण एवं अध्ययन सामग्री देखें
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