मानव धर्म एक, मानव जाति एक

 

परिचय (अजय यादव द्वारा): मानव धर्म एक, मानव जाति एक | अब से पहले शायद ही प्रमाणपूर्वक ऐसा वचन कहा गया है | मध्यस्थ दर्शन के प्रणेता अमरकंटक निवासी 93 वर्षीय दार्शनिक अग्रहार नागराज ने अनुसंधान पूर्वक सम्पूर्ण अस्तित्व को समझा | इसी में मानव का भी अध्ययन हुआ | इसी आधार पर मानव के बारे यह निष्कर्ष निकला | इसे हर मानव स्वयं जाँच सकता है और समझ सकता है | सभी को समझने के लिए इसे विकल्प रूप में प्रस्तुत किया गया है |

मानव जीवन और शरीर का संयुक्त रूप है

ज्ञानगोचर दृष्टि द्वारा देखने से जीवन समझ में आता है | इसके बाद यह भी समझ में आता है कि हर मानव सुखी रहना चाहता है | इसीलिए मानव सुख धर्मी है | यही मानव का धर्म है| शरीर दृष्टीगोचर विधि से दिखता है | शरीर के आधार पर सम्पूर्ण मानव जाति एक है | मानव को देखने से जीवित दिखता है | प्रत्येक मानव, प्रत्येक मानव को जाँच सकता है | जीवित रहना ही मानव की संज्ञा है | शरीर ही मरता है, शरीर ही जन्मता है | यह प्रजनन विधि से होता है | प्रजनन विधि प्राण कोषाओं से संबंधित है |

शरीर के साथ जाति का संबंध है |

शरीर विभिन्न जल वायु में विभिन्न नस्ल–रंग के साथ अवतरित होना देखने को मिल रहा है | साथ ही नस्ल-रंग के साथ ज्ञानाभ्यास, कर्माभ्यास, इन दोनों के योगफल में जातियों का गणना होना अभी तक मानव परंपरा में प्रचलित है जबकि मानव सभी स्थितियों में मानव ही है | इस आधार पर निर्णय लिया जा सकता है की सभी समझ सकते हैं प्रमाणित कर सकते हैं | इस आधार पर मानव जाति एक है | इसे सब समझ सकते हैं | इस के लिए  23rd अप्रैल, 2012 को कानपुर (मानव मंदिर, ग्राम करौली, कानपुर) में सर्व धर्म सम्मेलन निर्धारित हुआ है |

मानव धर्म एक

मानव स्वयं में अथवा सर्व मानव जीवन और शरीर के रूप में वैभवित रहना पाया जाता है | अभी तक मानव व्यक्तिवाद, समुदायवाद के साथ जीया है | अभी तक जो भी धर्म कहा, वह सामुदायिकता को कहा, यह एक दूसरे से मिला नहीं | इसलिए यह सीमा सुरक्षा बना है | धर्मयुद्ध जैसे शब्दों से युद्ध में भी धर्म को बताया जाता है | युद्ध और धर्म का क्या ताल्लुक है ? युद्ध और संघर्ष मुक्त विधि से ही मानव धर्म का प्रयोजन है | यह मानव जीकर प्रमाणित कर सकता है | हर देश काल में यह तीन स्तर पर पहचाना जाता है | पहला जीवमूलक विधि से पहचान, दूसरा विचार मूलक विधि से प्रमाण और तीसरा व्यवहारमूलक विधि से प्रमाण |

अनुभवमूलक प्रमाण को समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में देखा गया | विचार मूलक प्रमाण को नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, सत्य के रूप में होना पाया गया | व्यवहार मूलक प्रमाण स्वधन, स्वनारी / स्वपुरुष, दया पूर्ण कार्य व्यवहार है | ये तीनों ही मानव के स्वरूप में है | इसे समझने से स्पष्ट हो जाता है कि मानव धर्म एक और मानव जाति एक है |

–    अजय यादव (श्री ए. नागराज के लेख पर आधारित)

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