मानव का मूल्य

 

दुनिया का प्रत्येक मानव सुखी होकर जीना चाहता है | यही मानव की मूल चाहत है | हर कोई इस चाहत को पूरा करना ही चाहता है | जीवन विद्या अर्थात जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान समझ में आने पर सुखी होने का रास्ता बनता है | इसमें ही सर्वशुभ का आधार है | सबके निरंतर सुखी होने का स्रोत है, समाधानित रहने का प्रमाण है |

ये सब चीजें अपने आप से उद्गमित होते हैं | हर मानव ऐसा ही चाहता है | अकेले कोई होता नहीं, इससे यह सिद्धांत निकलता है | इस संबंध को छोडकर कोई मानव सुखी होने का प्रयत्न करे तो हो नहीं सकता | पानी से संबंध छोडकर सुखी कोई हो नहीं सकता | किन्ही भी चीजों के संबंध छोडकर हम सुखी हो नहीं सकते तो मानव या जीवन संबंध छोडकर कैसे जी पायेंगे? मनुष्य कैसे यांत्रिक हो जायेगा? भावनात्मक संसार से कैसे मुक्ति पायेगा? आप ही सोचो ये कैसे हो सकता है? हम बाजार में जाते हैं, सब्जी, अनाज, सोना, लोहा, सबका भाव पूछ्ते है, उस भाव का दृष्टा कौन है? मनुष्य ही होता है |

जब सबका भाव है तो मनुष्य का भी भाव होगा? मनुष्य के भाव का पता लगाना ही पहली आवश्यकता है, पर विडंबना देखिये मानव अपने ही भाव को छोडकर सबका भाव पकड़ लिया | जिनसे लाभ का मौका मिला, उन सभी भावों को पकड़ लिया, जबकि मनुष्य का भाव यानि उसका मूल्य समझ ले तो लाभ-हानि से मुक्त हो जायेंगे, क्योंकि मानव मूल्य समझने से, जीवन मूल्य समझने से, स्थापित मूल्य समझने से, शिष्ट मूल्य समझने से हमको लाभ-हानि की आवश्यकता शून्य हो जाती है | समझदारी आने के बाद हर व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है | सोचो जरा, ऐसा होने पर संसार की छाती का कितना बड़ा बोझ हल्का हो सकता है |

लाभ-हानि के चक्कर में आदमी न तो अपने को बचाता है, पराया बचाना ही नहीं | इसी चक्कर में सबका क़त्ल, सब चकनाचूर करना होता है | इस झंझट से मुक्ति तो इसी विधि से आती है कि मानव, मूल्यों को समझने में समर्थ हो जाए |  उसके पहले यह होने वाला नहीं है | जीवन विद्य समझ में आने से, अस्तित्व, सहा-अस्तित्व के रूप में समझ में आने से और मानवीयता पूर्ण आचरण में विशवास होने से मानव मूल्य चरितार्थ होता है | यही ज्ञान है |
–    ए. नागराज

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